पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

[दूसरी ओर से आठ सैनिक आकर उन पहले के सैनिकों को बन्दी बनाते हैं। राक्षस आश्चर्यचकित होकर देखता है] नायक-(आश्चर्य से) तुम सब कौन हो ? नवागत सैनिक -राक्षस के शरीर-रक्षक ! राक्षस-मेरे ! नवागत सैनिक- हां अमात्य ! आर्य चाणक्य ने आज्ञा दी है कि जबतक यवनों का उपद्रव है, तबतक सबकी रक्षा होनी चाहिये, भले ही वह राक्षस क्यों न हो। राक्षस--इसके लिए मैं चाणक्य का कृतज्ञ हूँ। नवागत सैनिक--परन्तु अमात्य ! कृतज्ञता प्रकट करने के लिए आपको उनके समीप तक चलना होगा। [सैनिकों को संकेत करता है वे बन्दियों और नायक को लेकर जाते हैं] राक्षस-मुझे कहाँ चलना होगा ? राजकुमारी से भेंट कर लू । नवागत सैनिक-वही मबसे भेंट होगी। यह पत्र है। (राक्षस पत्र लेकर पढ़ता है) राक्षस-अलका सिंहरण से ब्याह होनेवाला है उसमें मैं भी निमन्त्रित किया गया हूँ ! चाणक्य-विलक्षण बुद्धि का ब्राह्मण है, उसकी प्रखर प्रतिभा कूट- राजनीति के साथ रात-दिन जैसे खिलवाड़ किया करती है। नवागत सैनिक-हाँ, आपने कुछ और भी सुना है ? राक्षस-क्या ? नवागत सैनिक-यवनों ने मालवों से संधि करने का संदेश भेजा है । सिकन्दर ने उस वीर रमणी अलका को देखने की बड़ी इच्छा प्रकट की है, जिसने दुर्ग में सिकन्दर का प्रतिरोध किया था। राक्षस-आश्चर्य ! चर-हाँ अमात्य ! यह तो मैं कहने ही नहीं पाया था-रावी तट पर एक विस्तृत शिविरों की रंग-भूमि 'बनी है जिसमें अलका का ब्याह होगा । जब से सिकन्दर को यह विदित हुआ है कि अलका तक्षशिला नरेश आंभीक की बहन है, तब से उसे एक अच्छा अवसर मिल गया है। उसने उक्त शुभ अवसर पर मालवों और यवनों का एक सम्मिलित उत्सव करने की घोषणा कर दी है। आंभीक के पक्ष से निमंत्रित होकर-परिणय-सम्पादन कराने दल-बल के साथ स्वयं सिकन्दर भी आयेगा। राक्षस-चाणक्य-तू धन्य है ! मुझे ईर्ष्या होती है, चलो ! [सब जाते हैं] चन्द्रगुप्त : ५९५