पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 2.djvu/६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चाणक्य-सेनानी चण्डविक्रम एक बड़ी सेना हाथियों को लेकर आपकी सहायता को जायेंगे। सिल्यूकस-अच्छी बात है। (नर्तकीगण आकर गाती हैं) ("पपीहा काहे" की धुन) सखी सबही विधि मंगल आज । सब मिलके आनन्द मनावें अचल रहे यह राज! अपने भुजबल से किया, अजित नव साम्राज । ऐसे श्री सम्राट् का, अविचल हो यह राज ॥ गोरव लक्ष्मी ग्रीस की, अर्द्धागिनी मी वाम । कल्याणी को देखकर पूर्ण हुआ मन काम ॥ जिसके बल के सिन्धु मे, गज सम थके अराति । चन्द्रगुप्त-भुज वे सदा, सबल रहे सब भांति ॥ रहे आनन्दित राज समाज, आवे गावें विमल कीर्ति सव देवागना समाज । जिसकी प्रतिभा नदी मे, शत्रु-विघ्न द्रुम-मूल । उन्मज्जित हो, सो जयति, विष्णुगुप्त अनुकूल ॥ मुखी हो भारत विज्ञ समाज, भारत की यह कथा विजयिनी रहे सदा मिरताज । मखी सबही विधि जय महाराज श्री चन्द्रगुप्त की जय !! (पटाक्षेप) मगल आज। ५०: प्रमाद वाङ्मय