पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/११

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भारत का ऐतिहासिक काल-गौतम बुद्ध से माना जाता है, क्योंकि उस काल की बोद्ध-कथाओं में वर्णित व्यक्तियों का पुराणों की वंशावली में भी प्रसंग आता है। लोग वहीं से प्रामाणिक इतिहास मानते हैं। पौराणिक-काल के बाद गौतम बुद्ध के व्यक्तित्व ने तत्कालीन सभ्य संसार में बड़ा भारी परिवर्तन किया। इसलिये हम कहेंगे कि भारत के ऐतिहासिक काल का प्रारम्भ धन्य है, जिसने संसार में पशु-कीट-पतंग से लेकर इन्द्र तक के साम्यवाद की शंखध्वनि की थी। केवल इसी कारण हमें, अपना अतीव प्राचीन इतिहास रखने पर भी, यहीं से इतिहास-काल का प्रारम्भ मान लेने में गर्व होना चाहिये। ___भारत-युद्ध के पौराणिक काल के बाद इन्द्रप्रस्थ के पाण्डवों की प्रभुता कम होने पर बहुत दिनों तक कोई सम्राट नही हुआ। भिन्न-भिन्न जातियां अपने-अपने देशों में शासन करती थी। बौद्धों के प्राचीन संघों मे ऐमे १६ राष्ट्रों के उल्लेख हैं, प्रायः उनका वर्णन भौगोविक क्रम के अनुमार न होकर जातीयता के अनुसार है। उनके नाम हैं-अंग, मगध, काशी, कोसल, वृजि, मल्ल, चेदि, वत्स, कुरु, पाञ्चाल, मत्स्य, शूरसेन, अश्वक, अवन्ति, गान्धार और काम्बोज । ___उस काल में जिन लोगों से बौद्धों का मम्बन्ध हुआ है, इनमें उन्ही का नाम है। जातक-कथाओं में शिवि, सौवीर, मद्र, विराट और उद्यान का भी नाम आया है; किन्तु उनकी प्रधानता नही है। उस समय जिन छोटी-से-छोटी जातियों, गणों और राष्ट्रों का सम्बन्ध बौद्ध धर्म से हुआ, उन्हें प्रधानता दी गयी, जैसे 'मल्ल' आदि । ____ अपनी-अपनी स्वतन्त्र कुलीनता और पृथक् आचार रखनेवाले इन राष्ट्रों मेंकितनों ही में गणतन्त्र शासन-प्रणाली भी प्रचलित थी --निसर्गनियमानुसार एकता, राजनीति के कारण नही, किन्तु एक-सी सर्वत्र होने वाली धार्मिक क्राति के कारण थी। वैदिक हिंसापूर्ण यज्ञों और पुरोहितों के एकाधिपत्य से साधारण जनता के हृदयक्षेत्र में विद्रोह की उत्पत्ति हो रही थी। उसी के फलस्वरूप जैन-बौद्ध धर्मों का अनुवाचन कल्पना किया करती है और एक प्रसंग के अस्त होते-होते दूसरे का उदय होता है । फिर, अस्तभूत कल्पना प्रसंग-पुरस्सर होने की प्रतीक्षा में स्थगित रह अनुरूप क्षेत्र का शोध किया करती है। यह क्रम कल्पना के किसी इयत्ता में रूपान्तरित होने तक उस विश्व में चालू रहता है जो विश्व स्वतः कल्पोल्लासकारी स्पन्द की एक विश्वम्भरी कल्पना है। इस सन्दर्भ में अवलोक्य होगी कामायनी के आशा सर्ग की यह पंक्ति "विश्व कल्पना सा ऊंचा वह सुख शीतल सन्तोष निदान"। विश्व एक महती कल्पना की इयत्ता है जिसमें मानवी कल्पनायें आवत्तित-पुनरावर्तित होती अपनी इयत्तायें प्राप्त किया करती हैं । (सं०) अजातशत्रु-कथा प्रसंग : ११