पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१२

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प्रादुर्भाव हुआ। चरम अहिंसावादी जन-धर्म के बाद बौद्धधर्म का प्रादुर्भाव हुआ। वह हिंसामय 'वेद-वाद' और पूर्ण-अहिंसा वाली जैन-दीक्षाओं के 'अति-वाद' से बचता हुआ एक मध्यवर्ती नया मार्ग था। सम्भवतः धर्म-चक्र प्रवर्तन के समय गौतम ने इसी से अपने धर्म को 'मध्यमा-प्रतिपदा' के नाम से अभिहित क्यिा और इसी धार्मिक-क्रान्ति ने भारत के भिन्न-भिन्न राष्ट्रों को परस्पर सन्धि-विग्रह के लिए बाध्य किया। इन्द्रप्रस्थ और अयोध्या के प्रभाव का लास होने पर, इसी धर्म के प्रभाव से पाटलिपुत्र पीछे बहुत दिनों तक भारत की राजधानी बना रहा। उस समय के बौद्ध-ग्रन्थों में ऊपर कहे हुए बहुत-से राष्ट्रों में से चार प्रमुख राष्ट्रों का अधिक वर्णन है-कोसल, मगध, अवन्ति और वत्स । कोसल का पुराना राष्ट्र सम्भवतः उस काल में सब राष्ट्रों मे विशेष मर्यादा रखता था; किन्तु वह जर्जर हो रहा था। प्रसेनजित् वहाँ का राजा था। अवन्ति में प्रद्योत (पज्जोत) राजा था। मालव-राष्ट्र भी उस ममय सबल था। मगध, जिसने कौरवों के बाद भारत में महान् साम्राज्य स्थापित किया, शक्तिशाली हो रहा था। बिम्बिसार वहां के राजा थे। अजातशत्रु, वैशाली (वजि) की राजकुमारी से उत्पन्न, उन्ही का पुत्र था। इसका वर्णन भी बौद्धों की प्राचीन कथाओं में बहुत मिलता है। बिम्बिसार की बड़ी रानी कोसला (वासवी) कोमल नरेश प्रसेनजित् की बहन थी। वत्म-राष्ट्र की राजधानी कौशाम्बी थी, जिसका खंडहर जिला बांदा (करुई मव-डिवीजन) में यमुना-किनारे 'कोसम' नाम से प्रसिद्ध है। उदयन इसी कौशाम्बी का राजा था। इसने मगध-राज और अवन्तिनरेश की राजकुमारियों से विवाह किया था। भारत के सहस्ररजनी-चरित्र-'कथासरित्सागर' का नायक इमी का पुत्र नरवाहनदत्त था। वृहत्कथा (कथा-सरित्सागर) के आदि-आचार्य वररुचि है, जो कौशाम्बी में उत्पन्न हुए थे, और जिन्होंने मगध में नन्द का मन्त्रित्व किया। उदयन के समकालीन अजातशत्रु के बाद उदयाश्व, नन्दिवर्द्धन और महानन्द नाम के तीन राजा मगध के सिंहासन पर बैठे। शूद्रा के गर्भ से उत्पन्न, महानन्द के पुत्र, महापद्म ने नन्द-वंश की नींव डाली। इसके बाद सुमाल्य आदि आठ नन्दों ने शासन किया (विष्णुपुराण, चतुर्थ अंश)। किसी के मत मे महानन्द के बाद नवनन्दों ने राज्य किया। इस 'नवनन्द' के दो अर्थ हुए--नवनन्द (नवीन नन्द), तथा महापद्म और सुमाल्य आदि नौ नन्द । इनका राज्य-काल, विष्णुपुराण के अनुसार, २०० वर्ष है। मन्द के पहले राजाओं का राज्य-काल भी, पुराणों के अनुसार, लगभग १०० वर्ष होता है। ढुण्डि ने मुद्राराक्षस के उपोद्घात के अन्तिम नन्द का नाम धननन्द लिखा है। इसके बाद योगानन्द का मंत्री वररुचि हुआ। यदि ऊपर लिखी हुई पुराणों की गणना सही है, तो मानना होगा कि उदयन के पीछे, २०० वर्षों के बाद वररुचि हुए, क्योंकि पुराणों १२ : प्रसाद वाङ्मय