पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१२२

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राका की मधुरता जैसा उसके नेत्रों को सुन्दर व्य दिखाती है, विहग का कलरव जैसा उसके कर्ण मे सुन्दर सुनाई पड़ता है, वैसा किसी को नही । हो, जब वह अपनी अभिनव सृष्टि में इनका समावेश करता है तब उसके प्रेमी उसको देखते है, तथा सुनते है। कवि में क्लीव को तलवार ग्रहण करा देने की शक्ति है, वह चिरःदुखी को सुखमय कर सकता है, पर तब जब वह सच्चा कवि हो। महादुर्द्धर्ष औरंगजेब का प्रतिपक्षी बनना शिवाजी ऐसे सामान्य भूस्वामी का कार्य नही था, यह उस उत्तेजनामयी 'त्यों मलेच्छ वंश पर शेर शिवराज है' कवि (भूषण) की वाणी का ही प्रताप था। देखिये, महावीर विक्रमादित्य का केवल एक दुर्गद्वार, जो कि भग्नप्राय है, शेष- चिह्न रूप है; किन्तु कालिदास की 'शकुन्तला' अभी भी सद्यः प्रस्फुटित वकुल-मुकुल की तरह अपने सौरभ से दिगन्त को व्याप्त कर रही है, उसकी एक मात्रा का भी ह्रास नही है, दिन-दिन उसकी सुगन्ध से मनुष्य का मस्तिष्क शीतल होता है, और हुआ करेगा। इस कारण से कवि अमरजीवन लाभ करता है । इसी तरह सच्चे कवि की कविता भी अलौकिक आनन्द दान करती है, क्योकि यह उसकी सृष्टि है । महान् कवि की कविता की बल, बुद्धि और आनन्द के जलयन्त्र से तुलना कर सकते हैं, वह मनुष्य-जीवन मे अलौकिक बल प्रदान करती है, उसकी प्रतिभा अपना मधुर प्रकाश जब मनुष्य-हृदय पर डालती है तब उसका अन्धकारमय हृदय भी उज्ज्वल आलोक से पूर्ण हो जाता है। यदि अनुकूल कविता कही मिल जाती है, तो चित्त की शंका भी दूर हो जाती है। कविता प्रथम मे प्रायः सब भाषाओं में पद्यमय देखी जाती है, यहां तक कि हम लोगों का महामान्य वेद भी छन्दमय है, इसका कारण लोग बताते है कि-जब लिखने-पढ़ने की परिपाटी नही थी, तब लोग कण्ठस्थ करने के लिए वर्णक्रम से पद्योजना करके उसको कण्ठस्थ करते थे, किन्तु ध्यान से देखा जाय, तो इसका एक यही कारण नही था। पद्यमय रचना एक और भी उपयोग करती है, जैसे किसी कवि ने कहा है-'पूर्व काल मे मन्त्र थे कड़खे रनके।' यदि विचार किया जाय तो यह सरलतया समझ मे आ जायेगा कि कविता जहाँ ओज दान करती है वहां पद्य ही है, क्योंकि प्राय: संक्षिप्त और प्रभावमयी तथा चिरस्थायिनी जितनी पद्यमय रचना होती है, उतनी गद्य रचना नही । इसी स्थान मे हम संगीत की योजना कर सकते है, सद्यः प्रमावोत्पादक जैसा संगीत पद्यमय होता है, वैसी गद्य रचना रही। चित्रकारी तथा कविता से लोग मिलान करते है, पर कविता एक अचिन्त्य पूर्व सुन्दर चित्र खीच देती है जो कि बोल भी सकता है, पर चित्र वैसा नही कर सकता, यद्यपि कविता और चित्रकारी का कार्य एक ही है, पर यह मलयज पवन का भी चित्र खीच सकता है, २२: प्रसाद वाङ्मय