पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१३२

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प्रकृति-सौन्दर्य प्रकृति-सौन्दर्य ईश्वरीय रचना का एक अद्भुत समूह है, अथवा, उस बड़े शिल्पकार के शिल्प का एक छोटा-सा नमूना है, या इसी को अद्भुत रस की जन्मदातृ कहना चाहिए। सम्पूर्ण रूप से वर्णन करना तो मानो ईश्वर के गुण की समालोचना करना है। हे प्रकृति देवी ! तुमको नमस्कार है, तुम्हारा स्वरूप अकथनीय है। द्वीप, महाद्वीप, प्रायद्वीप, समुद्र नदी, पर्वत, नगर अथवा सम्पर्ण जल-स्थल तुम्हारे उदर में है। उनमें स्थान विशेष में ईश्वरीय शिल्प-कौशल के माथ तुम्हारी मनोहारिणी छटा अतीव सुन्दर दृष्टिगोचर होती है। अगाध जल के तल में, समुद्र के गर्भ में, कैसी अद्भुत रचना, कैसा आश्चर्य ! अहा ! यह विद्रुम-लता का जल-राशि मे लहरों के साथ झूमना, सीपियों का तथा छोटे-छोटे जन्तुओ का इधर-उधर सञ्चरण तथा विचित्र रूप की लताओं और वनस्पतियों के सन्निकट में अद्भुत जन्तुओं का समूह, और उनका जलतरंग के साथ-साथ हिलती हुई झाड़ियों मे घूमना, अथाह जल के नीचे ऐसे-ऐसे अमूल्य रत्न ! और ऐसा सुन्दर मनोहारी दम्य ! हिम-पूरित तराइयों में, तथा हिमावृत्त चोटियों पर अद्भुत रंग के नील, पीत, ललित कुसुम-सहित लताओं का, शीतल वायु के झोंके से दोलायमान होना, पुनः प्रातः सूर्य की किरणों का छायाभास पड़ने से हिमावृत्त चोटियो का इन्द्रधनुष-सा रंग कैसा सुन्दर जनाई पड़ता है ! समयानुकूल उन पर बर्फ की झडी और कड़ा वायु का झोंका कैमा हृदय को कंपाये देता है ! शिखरो पर से वेग सहित बहती हुई नदियां, तथा उनके प्रवाह से अद्भत शिलाखण्डों का बनाव, और उनकी अद्भुत स्थिति देखकर बोध होता है कि मानो कोई गुप्त बल अभी तक इनको रोके हुए हे ! इमी प्रकार अनेक स्थानों, अनेक नगरों मे, कतिपय पर्वतों पर तुम्हारा वही पूर्व- कथित रूप दृष्टिगोचर होता है, जिनके पूर्ण वर्णन करने के लिए, मनुष्य में योग्यता और बुद्धि हो ही नहीं सकती। तुम्हारा समयानुकूल परिवर्तन भी कैसा सुन्दर होता है ! ऋतुविभाग के अनुसार 'बसंत' में कोमल कलित पत्तियों से सहकार वृक्षो को सुहावना बनाती हुई, मधुर मंजरी तुम ही उत्पन्न करती हो । अहा ! उस समय तुम्हारी अद्भुत छटा देखने ही योग्य होती है ! कही परिमिन रूप से बहती हुई शवालिनी में विकमे हुए जाना, ३२ : प्रसाद वाङ्मय