पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१३३

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. अरविन्दों पर मधुब्रत-माला रस लेते हुए आनन्दोल्लास से गुंज रहे हैं। कहीं अर्द्ध- प्रस्फुटित रक्त तथा कोमल पत्तियों-सहित तरुण वृक्षों पर बैठे हुए रसमग्न कोकिल अपनी 'कुहुक' सुनाते हुए, कोमल डालियों को डोलायमान करते हैं ! सुरम्य वन, कुंज, लता, उपवन, पर्वत, तटी इत्यादि, जहाँ दृष्टिपात करो, उधर ही कुसुम-पूरित डालियाँ दिखाई देती है ! समय का तो नाहना ही क्या है, प्रभात बाल-अरुणोदय, पक्षियों का उड़ते हुए कलरव, शीतल सुरभित मलयानिल, भगवान् दिनकर की काञ्चनीय रश्मि, मनुष्यों का अपने कार्यो में लगने का कलरव तथा जन-शून्य स्थानों में तुम्हारी ही मनोहर शून्यता क्या हो अनुपम आनन्द का अनुभव कराती है ! फिर, वह मध्याह्न के अंशुमाली भगवान् का तप्त तेज, प्रचंड वायु, गर्मी की अधिकता का कैसा आतंक हृदय में उत्पन्न होता है । मधुगत्रि के तारागण-मध्यस्थ पूर्ण-चन्द्रमण्डल का अपनी रजत-किरणों से जगत् को धवलित करना, चन्द्र-किरण-स्पर्शित मधुर मकरंद-पूरित वायु का सञ्चरण ! यह सब तुम्हारी ही अद्भुत छटा है । पुनः ग्रीष्म के साथ-ही-साथ तुम्हारा परिवर्तन देखने में भी दुःसह होता है । सूर्य भगवान् की निश्राम नप्त किरणें लूह का सन्नाटा मारते हुए झपट, तेज-पूरित उष्ण निदाघ, कुसुमावली-पूरित वृक्षों का मुरझाना, नदियों का शुष्क होते हुए मन्द प्रवाह; धरणीतल पर की अविरल शून्यता, विचित्र प्रभाव उत्पन्न करती है ! परन्तु प्रकृति ! तुम ग्रीष्म में भी अपनी नष्टप्राय वासंतिक शोभा को रजनी में एक बार उद्दीप्त कर देती हो ! वेही शुष्क तथा मन्दवाहिनी नदियाँ, वे ही उच्च. प्रासाद-वेष्टित नगरावली नथा सुरम्य पर्वत-तटी, जो दिनकर के तेज-पूरित दिन में दुर्दर्शनीय हो रहे थे, कुमुदिनीनायक की सुधाप्लावित किरणों से रजत-मार्जित होने से, कैसे सुन्दर तथा मनोहारी दृश्य में परिवत्तित हो जाते हैं ! और वही विषम प्रचंड उष्णवायु, जो कि शरीर को झलसाए देती थी, चन्द्रकिरण के स्पर्श से कुछ शीतल हुआ जाता है । यह सब क्या है ? केवल तुम्हारा ही अनियमित स्वरूप है। अरे कहाँ निर्मलचन्द्र, कहाँ यह श्याम-सघन घन, कहाँ सुधा-कण-समान विकीर्ण तारागण का मन्द प्रकाश, और कहीं यह सौदामिनी-माला का बारम्बार चमकना ! कहां दिवाकर-तेज में वृक्षों की उदासीनता और कहाँ मेघावली के जलसिञ्चन से पत्रपुञ्ज में हरियाली। वर्षा ऋतु में भी प्रकृति का कैमा सुन्दर तथा मनोहर दृश्य होता है ! नवीन मेघमालाच्छादित गगन मण्डल में दुर्जय वारिद-रूपी दानव के असित शरीर पर इन्द्र के वज्रपात से चिनगी छिटकने के समान विद्युल्लता का बारम्वार चमकना तथा सघन वृक्षाच्छादित हरित पर्वत-श्रेणी, सुन्दर पूरित नदियों का हरियाली में छिपने हुए वहना, कतिपय स्थानों से प्रकटरूप से वेगसहित प्रवाह, हृदय की चञ्चल धारा को अपने साथ बहाए लिए जाता है ! निर्मल जल- eu प्रकृति-सौन्दर्य : ३३