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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१४

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ने दी थी)। वीणा-द्वारा हाथियों और शबरों की बहुत-सी सेना एकत्र करके उसने कौशाम्बी को हस्तगत किया और अपनी राजधानी बनाया, किन्तु वृहत्कथा के आदि आचार्य वररुचि का कौशाम्बी में जन्म होने के कारण उदयन की ओर विशेष पक्षपात-सा दिखाई देता है। अपने आख्यान के नायक को कुलीन बनाने के लिए उसने उदयन को पाण्डव-वंश का लिखा है। उनके अनुसार उदयन गाण्डीवधारी अर्जुन की सातवी पीढ़ी में उत्पन्न सहस्रानीक का पुत्र था। बौद्धों के मतानुसार 'परन्तप' के क्षेत्रज पुत्र उदयन की कुलीनता नही प्रकट होती; परन्तु वररुचि ने लिखा है कि इन्द्रप्रस्थ नष्ट होने पर पाण्डव-वंशियों ने कौशाम्बी को राजधानी बनाया। वररुचि ने यों सहस्त्रानीक से कौशाम्बी के राजवंश का आरम्भ माना है। कहा जाता है, इसी उदयन ने अवन्तिका को जीतकर उसका नाम उदयपुरी या उज्जयन-पुरी रखा। कथा-सरित्सागर में उदयन के बाद नरवाहनदत्त का ही वर्णन मिलता है। विदित होता है, एक-दो पीढ़ी चलकर उदयन का वंश मगध की साम्राज्य-लिप्सा और उसकी रण-नीति मे अपने स्वतन्त्र अस्तित्व को नहीं रख सका। किन्तु विष्णुपुराण की एक प्राचीन प्रति मे कुछ नया शोध मिला है और उससे कुछ और नयी बातों का पता चलता है । विष्णुपुराण के चतुर्थ अंक के २१वें अध्याय में लिखा है कि "तस्यामि, जनमेजयश्रुतसेनोग्रसेनभीमसेनाः पुत्राश्चत्वारो भविष्यन्तिा। तस्यापरः शतानीको भविष्यति योऽसौ"विषयविरक्तचित्तो "निर्वाणमाप्स्यति ।२। शतानीकादश्वमेघदत्तो भविता । तस्मादप्यधिसीमकृष्णः अधिसीमकृष्णात् निचक्षुः यो गंगयापहृते हस्तिनापुरे कौशाम्ब्याम् निवत्स्यति ।" इसके बाद १७ राजाओं के नाम है। फिर "ततोप्यपरशतानीकः तस्माच्च उदयनः उदयनादहीनरः" लिखा है। इससे दो बातें व्यक्त होती हैं। पहली यह कि शतानीक कौशाम्बी में नहीं गये; किन्तु निचक्षु नामक पाण्डव-वंशी राजा हस्तिनापुर के गंगा में बह जाने पर कौशाम्बी गये। उनसे २९वीं पीढ़ी में उदयन हुए । सम्भवतः उनके पुत्र अहीनर का ही नाम कथा-सरित्सागर मे नरवाहनदत्त लिखा है । ____ दूसरी यह कि शतानीक इस अध्याय में दोनों स्थान पर 'अपुरशतानीक' करके लिखा गया है। 'अपरशतानीक' का विषय-विरागी होना, विरक्त हो जाना लिखा है। सम्भवतः यह शतानीक उदयन के पहले का कौशाम्बी का राजा है। अथवा बौद्धों की कथा के अनुसार इसकी रानी का क्षेत्रज पुत्र उदयन है, किन्तु वहाँ इस राजा का नाम परन्तप है । जनमेजय के बाद जो 'अपरशतानीक' आता है, वह भ्रमसा प्रतीत होता है, क्योंकि जनमेजय ने अश्वमेध यज्ञ किया था; इसलिए जनमेजय के पुत्र का नाम अश्वमेघदत्त होना कुछ संगत प्रतीत होता है, अतएव कौशाम्बी में १४:प्रसाद वाङ्मय