पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१३

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के अनुसार ४ शिशुनाग वंश के और ९ नन्दवंश के राजाओं का राज्य-काल इतना ही होता है। महापंश और जैनो के अनुसार कालाशोक के बाद केवल नवनन्द का नाम आता है। कालाशोक पुराणों का महापद्म नन्द है। बौद्धगणनानुसार इन शिशुनाग तथा नन्दो का सम्पूर्ण राज्यकाल १०० वर्ष से कुछ ही अधिक होता है। यदि इसे माना जाय, तो उदयन के १००-१२५ वर्ष पीछे वररुचि का होना प्रमाणित होगा। कथासरित्सागर मे इसी का नाम 'कात्यायन' भी है-"नाम्नाबररुचिः किं च कात्यायन इति श्रुत."। इन विवरणो मे प्रतीत होता है कि वररुचि उदयन के १२५-२०० वर्ष बाद हुए। विख्यात उदयन की कौशाम्बी वररुचि की जन्मभूमि है। मूल वृहत्कथा वररुचि ने काणभूति मे कही, और काणभूति ने गुणाढ्य से। इससे व्यक्त होता है कि यह वथा वरमनि के मस्तिष्क का आविष्कार है, जो सम्भवतः उसने मंक्षिप्त रूप मे मस्कृत मे कही थी, क्योकि उदयन की कथा उसकी जन्म-भूमि मे किम्वदन्तियो के रूप में प्रचलित रही होगी। उसी मूल उपाख्यान को क्रमशः काणभूति और गुणाढय न प्राकृत ओर पैशाची भाषाओं में विस्तारपूर्वक लिखा। महाकवि क्षेमेन्द्र ने उन वृहस्था-म जरी नाम मे, मक्षिप्तरूप में, संस्कृत में लिखा। फिर, काश्मीर-राज अनन्तदेव के राज्य-काल मे कथा-सरित्सागर की रचना हुई। इस उपाख्यान को भारतीयो ने बहुत आदर दिया और वत्सराज उदयन कई नाटको और उपाख्यानां मे नायक ननाये गये । स्वप्न-वासवदत्ता, प्रतिज्ञायौगन्धरायण और रत्नावली में इन्ही का वर्णन है। 'हर्षचरित' मे लिखा है-"नागवनविहारगील च मायामातङ्गाङ्गानिर्गताः महासेनमनिका: वरूपतिन्ययंसिषुः।" मेघदूत में भी-"प्राप्यावन्तीनुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान्" और "प्रद्योतस्य प्रियदुहितरं वत्सराजोऽत्र जह" इत्यादि है। इससे इस कथा की सर्वलोकप्रियता समझी जा सकती है। वररुचि ने इस उपाख्यान-माला को मम्भवतः -५० ईमा पूर्व लिखा होगा। सातवाहन नामक आन्ध्र-नरपति के राजपण्डित गुणाढय ने इसे बृहत्कथा नाम से ईमा की पहली शताब्दी में लिखा। इस कथा का नायक नरवाहनदत्त इसी उदयन का पुत्र था। बौद्धों के यहां इसके पिता का नाम परन्तप' मिलता है। और 'मरन परिदीपितउदेनिवस्तु' के नाम से एक आख्यायिका है। उसमे भी (जैसा कि कथासरित्सागर में) इसकी माता का गरुड़-वंग के पक्षी द्वारा उदयगिरि की गुफा मे ले जाया जाना और वहाँ एक मुनि-कुमार का उनकी रक्षा और सेवा करना लिखा है। बहुत दिनों तक इसी प्रकार माथ रहते-रहते मुनि से उसका स्नेह हो गया और उसी से वह गर्भवती हुई। उदयगिरि (कलिंग) की गुफा में जन्म होने के कारण लड़के का नाम उदयन पड़ा। मुनि ने उसे हस्ती वश करने की विद्या, और भी कई सिद्धियां दीं। एक वीणा भी मिली (कथा सरित्सागर के अनुसार, वह, प्राण बचाने पर, नागराज अजातशत्रु-कथा प्रसंग : १३