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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१५४

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रहस्यवाद काव्य में आत्मा की संकल्पात्मक मूल अनुभूति की मुख्य धारा रहस्यवाद है । रहस्यवाद के संबंध में कहा जाता है कि उसका मूल उद्गम सेमेटिक धर्म-भावना है, और इसीलिए भारत के लिए वह बाहर की वस्तु है। किंतु शाम देश के यहूदी जिनके पेगंबर मूसा इत्यादि थे, सिद्धांत में ईश्वर को उपास्य और मनुष्य को जिहोवा (यहूदियों के ईश्वर) का उपासक अथवा दास मानते थे। सेमेटिक धर्म मे मनुष्य की ईश्वर से समता करना अपराध समझा गया है। क्राइस्ट ने ईश्वर का पुत्र होने की ही घोषणा की थी, परंतु मनुष्य का ईश्वर से यह संबंध भी जिहोवा के उपासकों ने सहन नहीं किया और उसे सूली पर चढ़वा दिया।' पिछले काल में यहूदियों के अनुयायी मुसलमानों ने भी 'अनलहक' कहने पर मंसूर को उसी पथ का पथिक बनाया। सरमद का सर काटा गया। सेमेटिक धर्मभावना के विरुद्ध चलनेवाले ईसा, मंसूर और सरमद-आर्य अद्वैत धर्मभावना से अधिक परिचित थे। सूफी संप्रदाय मुसलमानी धर्म के भीतर वह विचारधारा है जो अरब और सिंध का परस्पर संपर्क होने के बाद से उत्पन्न हुई थी। यद्यपि सूफी धर्म का पूर्ण विकास तो पिछले काल में आर्यों की बस्ती ईरान में हुआ, फिर भी उनके सब आचार इस्लाम के अनुसार ही हैं। उनके तौहीद में चुनाव है एक का, अन्य देवताओं में से, न कि संपूर्ण अद्वैत का । तोहीद का अद्वैत से कोई दार्शनिक संबंध नहीं। उसमें जहाँ कही पुनर्जन्म या आत्मा के दार्शनिक तत्व का आभास है, वह भारतीय रहस्यवाद का अनुकरण मात्र है, क्योंकि शामी धर्मों के भीतर अद्वैत कल्पना दुर्लभ नही, त्याज्य भी है। कुछ लोगों का कहना है मेसोपोटामिया या बाबिलन के, बाल, ईस्टर प्रभृति %. Therefore the Jews sought the more' to kill him, because he not only had broken the Sabbath, but said that God was his Father, making himself equal with God (St. Jobo. 5) I and my father are one. Then the jews took up stones again to stone him. (St. John, 10). ५४: प्रसाद बाङ्मय