पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१८४

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नृत्य प्राचीन वैदिक काल से ही भारत में थे (यस्यां गायति नृत्यंति भूभ्या, पृथ्वीसूक्त); किंतु अभिनय के साथ इनकी योजना भी भारत में प्राचीन काल से ही हुई थी। इसलिए यह कहना ठीक नहीं कि भारत में अभिनय कठपुतलियों से आरंभ हुआ, और न तो महावीरचरित ही छाया-नाटक के लिए बना। उसमे तो भवभूति ने स्पष्ट ही लिखा है- 'ससंदर्भो अभिनेतव्य.'। कठपुतलियों का भी प्रचार संभवतः पाठ्य-काव्य के लिए प्रचलित क्यिा गया। एक व्यक्ति कात्य का पाठ करता था और पुतलियो के छाया-चित्र उसी के साथ दिखलाये जाते थे। मलावार मे अब भी कंबन के रामायण का छाया-नाटक होता है । कठपुतलियो से नाटक आरभ होने की कल्पना का आधार सूत्रधार शब्द है। किंतु सूत्र के लाक्षणिक अर्थ का ही प्रयोग सूत्रधार और सूत्रात्मा जैसे शब्दो मे मानना चाहिए जिसमे अनेक वस्तु ग्रथित हो और जो सूक्ष्मता से सब मे व्याप्त हो, उमे सूत्र कहते है। कथावस्तु और नाटकीय प्रयोजन के सब उपादानों का जो ठीक-ठीक संचालन करता हो, यह मअधार आज, ल के 'डाइरेक्टर' की ही तरह का होता था। सम्भव है कि पटाक्षेप और यवनिका आदि के सूत्र भी उसी के हाथ मे रहते हों। सूत्रधार का अवतरण रगमंच पर मबसे पहले रग-पूजा और मगलपाठ के लिए होता था। कथा या वस्तु की सूचना देने ।। वाम स्थापक करता था। रगमच की व्यवस्था आदि मे यह सूत्रधार का सहकारी रहता था, किन्तु नाटका मे 'नाद्यते सूत्रधाराः' से जान पड़ता है कि पीछे लाघव के लिए सूत्रधार स्थापक का भी काम करने लगा। हाँ, अभिनवगुप्त ने गद्य पद्य-मिश्रित नाटको से अतिरिक्त राग काव्य का भी उल्लेख किया है (अभिनव भारती अध्याय ४)। राघवविनय और मारीच बध नाम के राग-काव्य ठक्क और ककुभ राग मे कदाचित् अभिनय के साथ वाद्य ताल के अनुमार गाये जाते थे। ये प्राचीन राग-काव्य ती आजकल की भाषा मे गीति-नाट्य कहे जाते है । इस तरह अति प्राचीन काल में ही नृत्य अभिनय से संपूर्ण नाटक और गीति-नाट्य भारत में प्रचलित थे। वैदिक, बौद्ध नया रामायण और महाभारत- काल मे नाटकों का प्रयोग भारत में प्रचलित था। 1. The cxistence in India of the Ramayan shadow play will surprise not a few people, this primitive drama is still to be found in Malabar where it is acted by strolling players and their puppets, and the author was lucky to witness a per- formance. (Note of Editor, The Illustrated weekly of India, 7 July 1933) ८४ प्रमाद वाङ्मय