पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/१९३

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दृश्यांतर और चित्रपटों की अधिकता के साथ ही पारसी-स्टेज ने पश्चिमी 'ट्यूनों' का भी मिश्रण भारतीय संगीत में किया। उसके इस काम में बंगाल ने भी साथ दिया; किंतु उतने भद्दे ढंग से नही। बंगाल ने जितना पश्चिमी ढंग का मिश्रण किया, वह सुरुचि से बहुत आगे बढा। चित्रपटों मे सरलता उसने रक्खी; किंतु पारसी स्टेज ने अपना भयानक ग पद नही किया। पारमी स्टेज मे दृश्यो और परिस्थितियो के सकलन की प्रधानता है । वस्तु-विन्यास चाहे कितना ही शिथिल हो, किंतु अमुक परदे के पीछे वह दूसरा प्रभावोत्पादक परदा आना ही चाहिये- कुछ नही तो एक असबद्ध फहद भंडती से ही काम चल जायगा । हिदी के कुछ अकाल पक्व आलोचक जिनका पारसी स्टेज से पिट नही छूटा है, सोचते है स्टेज म यथार्थवाद | भी वे इन ने भी सहनशील नही कि फूहड परिहास के बरले जिमसे वह दर्शको को उलझा लेता है-तीन-चार मिनट के लिए काला परदौ खीचकर श्यातर बना लेने का अवसर र गभच गो दें। हिंदी का कोई अपना रगमन नही है। जर उसके पनपने का अवसर था, तभी सस्ती भावुकता तेकर वर्तमान सिनेमा । बोलने वाले चित्रपटो का अभ्युदय हो गया, और फलतः अभिनया का रगगच ही मा हो गया । माहिगित सुझाच पर सिनेमा ने ऐमा धावा चोल दिया है कि कुरुचि को नतृत्व करने का गर्ण जवमर मिल गया है। उन पर भी पारपी स्टेज की हा। हाँ पारसी स्टेज क आरम्भिक विनय-सूत्रो मे क यह भी था कि वे लोग प्राचीन इगलैंड के गमचो की तरह स्त्रियो का सहयो। नही पगः करते थे। (वो -'ताब्दी मे धारे धीरे स्त्रिया रगमच पर इगलैंड मे आइ, कितु पिनेमा ने स्त्रियो का, रगमच पर अबाध अधिकार दिया। बालको को स्त्रीपात्र के अभिनय की पाछनीय प्रणा से छुटकारा मिला, किंतु रगमचो की अम फनता वा प्रधान कारण है त्रिया का उनमे जभाव विशेषत. हिंदी-रंगमच के frए। बहुत-से नाटक मडलियो द्वारा इसलिए नहीं खेले जाते कि उनके पास स्त्री-पात्र नही है, रगमच की तो अमाल मृत्यु हिंदी में दिखाई पड़ रही है। कुछ म दलियां कभी-कभी साल म एकाध बार वार्षिकोत्सव मनाने के अवमर पर, कोई अभिनय कर लेती है। पुकार होती है आलोपको की हिदी नाटको के अभाव की। रगमन नहीं ९, ऐमा समझने का कोई साहा नहीं करता क्योकि दोषपर्शन राहज है। उसके लिए वैसा प्रात्ल करना कठिन है, जैसा कीन ने किया था। युग के पीछे हम चलने का स्वाग भरते हे, हिदी में नाटको का पथार्थ अभिनीत देखना चाहते है और यह नही देखते-कि पश्चिम मे भव भी प्राचीन नाटको के सवाक् चित्र बनाने के लिए प्रयत्न होता रहता है । ऐतिहासिक नाटको के सवाक्-चित्र बनाने के लिए उन ऐतिहासिक व्यक्तियो की स्वरूपना के लिए टनो मेक-अप का मसाला एक-एक पात्र पर लग जाता है। युगो मिश्या धारणा से अभिभूत गर रगमच : ९३