पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२०

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ब्याह कर दिया था, जिससे दासी-संतान होने के कारण विरुद्धक को अपने पिता के द्वारा अपदस्थ होना पड़ा था। शाक्यों के संहार के कारण बौद्धों ने इसे भी क्रूरता का अवतार अंकित किया है। 'भद्दसाल-कथा' के सम्बन्ध में जातक में कोसलसेनापति बन्धुल और उसकी स्त्री मल्लिका का विशद वर्णन है। इस बन्धुल के पराक्रम से भीत होकर कोसल-नरेश ने इसकी हत्या करा डाली थी और इसका बदला लेने के लिए उसके भागिनेय दीर्घकाण्यण ने प्रसेनजित् मे राजचिह्न लेकर ऋर विरुद्धक को कोसल के सिंहासन पर अभिषिक्त किया। प्रसेन और विरुद्धक सम्बन्धिनी घटना का वर्णन 'अवदान-कल्पलता' में भी मिलता है। बिम्बिसार और प्रसेन दोनों के पुत्र विद्रोही थे और तत्कालीन धर्म के उलट-फेर में गौतम के विरोधी थे। इसीलिए इनका क्रूरतापूर्ण अतिरञ्जित चित्र बौद्ध-इतिहास मे मिलता है। उस काल के राष्ट्रों के उलट-फेर में धर्म के दुराग्रह ने भी सम्भवतः बहुत-सा भाग लिया था। मागन्धी ( श्यामावती) जिसके उकसाने से पद्मावती पर उदयन बहत असन्तुष्ट हुए थे, ब्राह्मण-कन्या थी, जिसको उसके पिता गौतम से ब्याहना चाहते थे, और गौतम ने उसका तिरस्कार किया था। इसी मागन्धी को और बौद्धों के साहित्य मे वणित आम्रपाली ( अम्बपाली ) को हमने कल्पना द्वारा एक मे मिलाने का साहस किया है। अम्बपाली पतिता और वेश्या होने पर भी गौतम के द्वारा अन्तिम काल मे पवित्र की गयी। ( कुछ लोग जीवक को इसी का पुत्र मानते है )। लिच्छवियों का निमन्त्रण अस्वीकार करके गौतम ने उसकी भिक्षा ग्रहण की थी। बौद्धो की श्यामावती, वेश्या आम्रपाली, मागन्धी और इस नाटक की श्यामा वेश्या का एकत्र संघटन, कुछ विचित्र तो होगा; किन्तु चरित्र का विकास और कौतुक बढ़ाना ही इसका उद्देश्य है। सम्राट् अजातशत्रु के समय में मगध साम्राज्य-रूप में परिणत हुआ; क्योंकि अंग और वैशाली का इसने स्वयं विजय किया था और काशी अब निर्विवाद रूप से उसके अधीन हो गयी थी। कोसल भी इसका मित्रराष्ट्र था। उत्तरीय भारत मे यह इतिहास-काल का प्रथम सम्राट् हुआ। मथुरा के ममीप परखम गांव मे मिली हुई अजातशत्रु की मूर्ति देखकर मिस्टर जायमवाल की मम्मति है कि अजातशत्रु ने सम्भवतः पश्चिम में मथुरा तक भी विजय किया था।' १. इस परखम-प्रतिमा को कनिंघम किसी गक्ष की प्रतिमा मानते थे । श्री जायसवाल ने उस पर टंकित लेख का पाठ-शोध करते हुए उसे अजातशत्रु कुणीक की २.: प्रसाद वाङ्मय