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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२२

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युवानच्वाङ्ग तो शाक्यो मे प्रचलित ईश्वरदेव की प्रतिमा की उपासना का भी विवरण देता है ( वाटर्स ऑफ युवानच्वाङ्ग, जिल्द २, पृ० १३)। अस्तु पाश्चात्य विद्वान् कनिंघम की उक्त मान्यता से प्रभावित होकर अपने भ्रामक मतो की पुष्टि का प्रयास करते थे और पाश्चात्य स्थापनाओ पर अपने सिद्धान्तो को जीवित रखने वाले आधुनिक विद्वान् भी ( सेलेक्ट इस्क्रिप्शंस, पृ० ९५ ) अब तक उस भ्रम का आदर करते हैं। पर यह अयुक्त है और परखम प्रतिमा कुणीक की है जिसने पश्चिम मे मथुरा तक मगध-साम्राज्य को विस्तृत किया। (सम्पादक) २२:प्रमाद वाङ्मय