पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२२२

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हामहिंदव जिस प्रकार सप्तसिंधु का विकृत रूप है, वैसा ही हरहती-सरस्ती का है। अरगंदाब, अफगानिस्तान के कंदहार प्रांत की एक बड़ी नदी है। वर्तमान काल के मानचित्र में हारूत से लेकर कंदहार तक की नदियों का एक सप्तक आप अच्छी तरह से देख सकेगे, जिसके नीचे (Zirreh) का दलदल और एक रेगिस्तान भी है । अविनाशचन्द्र दास ने-"एका चैतत् सरस्वती नदीनां शुचिर्यती गिरिभ्य भा समुद्रात्"-(७-९५-२) के आधार पर पंजाब की सरस्वती का राजपूताना समुद्र में गिरना लिखा है। कितु और मंत्रों में समुद्र में गिरने का वर्णन नहीं मिलता। अतः जिस प्रकार सामग्रमी ने "रसाद्वित्वं तु नूनमङ्गीकार्यम्" से 'रसा' नाम की दो नदियों मान लेने की सम्मति प्रकट की है, वैसे ही सरस्वती के लिए भी आवश्यक मानना होगा। जैसा हम ऊपर दिखला आये हैं कि सरस्वती अपस्तमा है। वैसे ही और भी प्रमाण उसके अपनी सहायक नदियों में प्रबल होने के मिलते हैं । 'प्र क्षोदसा धायसा सत्र एषा सरस्वती धरुणामायसी पूः । प्रबावधाना रथ्येव याति विश्वा अपो महिना सिन्धुरन्या:"--(७-९५-१) । इसमे अपने साथ की नदियों से यह प्रबल और एक दूसरी सिधु के सदृश मानी गयी है। इस प्रकार यह सरस्वती का सप्तक दक्षिण पश्चिमी अफगानिस्तान मे ठहरता है। इसमें दास के मत से भी कोई असंभावना नहीं दिखाई देती है। यद्यपि उन्होंने प्राचीन सप्तसिंधु के आर्यावर्त को चतुस्समुद्र से घिरा हुआ माना है, फिर भी वे लिखते हैं कि "सप्तसिंधु उत्तर पश्चिम की ओर गाधार प्रांत के द्वारा पश्चिमी एशिया या एशियामाइनर से मिला हुआ था।" (ऋग्वेदिक, इण्डिया पृ० ३६०)। इसलिये चारों समुद्रों वाली सीमा का सिद्धांत हमारे गांधार के सारस्वत प्रदेश के लिए बाधक नहीं होता। ऊपर कहे हुए गंगा, सिधु और सरस्वती के तीनों सप्तको की भूमि, वैदिक काल के आर्यों की लीला भूमि थी। जहाव्य अर्थात् गंगा की घाटी, सिधु और सरस्वती के पवित्र मंगलमय तथा परम-प्रिय प्रदेशों के अतिरिक्त अन्य प्रदेशों से भी संहिता- काल के आर्य लोग अपरिचित नही थे। अथर्व संहिता के पंचम कांड मे परुष, महावृष, मूजवत्, वाह्लीक इत्यादि के नाम तो आये ही हैं, इनके अतिरिक्त तत्कालीन आर्यावर्त के अत्यन्त पूर्व स्थित मगध का भी उल्लेख मिलता है। परन्तु (F. N.) Harahvaiti; Apažvaiia; corrupted into the Arrokhag (Name of the Country :n the Arabic literature) and Arghand (in the modern name of river Arghand-ab)-(p. 7. vendidad). १२२: प्रसाद वाङ्मय