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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२२४

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में। किंतु अत्यन्त प्राचीन काल में आर्य-द्रविड़ सभ्यता का संघर्ष असम्भव था; क्योंकि द्रविड़ (कृष्ण) जाति की जन्मभूमि दक्षिणी• महाद्वीप, राजपूताना समुद्र के बारा, प्राचीन आर्यावर्त से अलग था और वह महादीप वर्तमान अरब, दक्षिणी भारत और अफ्रीका को एक में मिलाए पा। प्राचीन ऋग्वेद में आप कितने ही समयों के तारतम्य को स्पष्ट देख सकेंगे, कितु उसके साथ ही 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम्' का सिद्धांत स्पष्ट बतलाता है कि मुख्यतः आर्य संस्कृति एक पी, जिसे न माननेवाले उसी प्राचीन जाति के लोग भी अनार्य कहलाते थे। ऋग्वेद के आवित्तं में वैदिक सम्यता वाले आर्यों को इन्हीं उच्छृखल धर्म-विहीनों से युद्ध करना पड़ता था, जो प्रायः दस्यु जीवन की ओर अधिक प्रवृत्त रहते थे। जैसा पहले कहा गया है, दक्षिणी द्रविड़ों मे या उनकी सभ्यता से आर्यों का संघर्ष होना मानने के लिए कोई विशेष कारण नहीं है, क्योकि एक तो राजपूताना समुद्र बीच का व्यवधान था दूसरे द्रविड़ों का अधिक आकृति-सम्बन्ध भी उन सुमेरियन और सिधु के अवशिष्ट चिह्नों को छोड़ जानेवाले मनुष्यों से नहीं मिलता। द्रविड़ एक स्पष्ट दक्षिणी महाद्वीप की जाति है जिसका मूल उद्गम दक्षिणी अफ्रीका की कालाहारी अधित्यका (Kalahari platcau in South Africa) है, जैसा कि Camron cadle expedition के प्रयास से सिद्ध किया जा रहा है।' यह दक्षिणी द्रविड़ सभ्यता स्वतन्त्र रूप से कही भी उस प्राथमिक अवस्था के ऊपर न उठी जिसे उन्होंने पहली बार अन्य जाति से ग्रहण किया था। कब-कब, कहां-कहाँ, आर्यावर्त के दिव्य विजेताओं और अफ्रीका के कृष्णों से रक्त-मिश्रण के द्वारा न्यूनाधिक श्वेत- कृष्ण-जातियां बनी, इसका अनुमान करना कठिन है। इस प्राचीन सप्तसिंधु के अन्तर्गत मेरु प्रदेश मे ही अग्रजन्मा उत्पन्न हुए। मेरु पर ही स्वर्ग था। पश्चिमी विद्वानों ने हमारे उस प्राचीन इतिहास को 'माइथालोजी' मान रखा है। उनमें इस धारणा के कारण हमारे निरुक्तकार भी है। निरुक्त संभवतः उस काल में बना जब कि प्राचीन वैदिक मन्त्रों के अर्थ लोगों को विस्मृत हो चले थे। क्योंकि, उसमें कहीं-कहीं एक-एक शब्द की व्याख्या चार-चार प्रकार से की गयी है। इसमें निरुक्तकारों का एक और भी उद्देश्य था, वह था वेदों का अपौरुषेत्व प्रमाणित करना। किंतु स्वयं निरुक्तकार अपने पूर्ववर्ती-वेदों,के अर्थ-निर्णय में- एक ऐतिहासिक मत भी मानते थे-'तत्को वृत्रः मेघ इति नरुक्ताः त्वाष्ट्रोऽसुर इत्यतिहासिका।' वैदिक मन्त्रों के ये अर्थ उपनिषद् और ब्राह्मण-काल की कल्पनाये 1. I am able definitely to confirm that mar emerged in the lap of this mother earth in this strange wild country. (Dr. Cadle Pioneer 17th october 1928). १२४ : प्रसाद बामप