पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२२५

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है। जब बहुदेववाद और प्रकांड-संबंधी मन्त्रों का एकेश्वरवाद के साथ समन्वय होने लगा था और अब 'उषा वा मेध्यस्य शिरः' के सिद्धांत का प्रचार हुमा, प्राचीन ऋग्वेद आदि की मात्राएं तक गिनी गयीं और वे अपौरुषेय बना दिये गये। यद्यपि ऋग्वेद में ही एकेश्वरवाद तो क्या शुद्ध दार्शनिक विचारों तथा आत्मानुभूति की भी झलक दिखाई देती है, किंतु देवों का स्वतंत्र अस्तित्व और उनका इतिहास मान लेने के लिए पिछले काल के एकेश्वरवादी और अपौरुषेयवादी प्रस्तुत न हुए। अब भी सनातनधर्म का बहुदेववाद मूल में प्राचीन ऐतिहासिकों का अनुयायी है और भार्यसमाज एकेश्वरवादी निरुक्त का अनुगमन करता है, जिसके अनुसार देवों को वे रूपक द्वारा मूर्तिमान की गयी सर्व-शक्तिमान की शक्तियां मानते हैं । वेदों का अध्ययन करने वाले पाश्चात्य विद्वानों ने भ्रमवश प्राचीनतर ऐति- हासिक संप्रदाय को न मानकर हमारा इतिहास भ्रामक बना देने के लिए निरुक्त के अर्थ को ही पथ-प्रदर्शक माना है। साथ ही 'माइथालोजी' मानते हुए भी उन्हें ऋङ् मन्त्रों से भूगोल, नदियों और ज्योतिष-संबंधी गणनाओं के आधार पर आयं-इतिहास और समय निर्धारण की सूची है। तात्पर्य यह है कि प्राचीन ऐतिहासिकों का मत सर्वथा निर्मूल न हो सका । रंगोजिन ने वैदिक इंडिया के ३०३ पृष्ठ पर लिखा है- 'बहुत से साधारण वैदिक नामों का एक ही सपाटे मे अप्राकृतिक शक्तियों और अमर्यों से जो संबंध लगाया जाता है, वह ठीक नहीं । वास्तव मे कितने ही अंतरिक्ष युद्धों का संबंध प्राकृत मत्यं वीरों के भयानक संघर्षों से है।" उस प्राचीन वैदिक अथवा वर्तमान संसार के प्राग-ऐतिहासिक काल में आर्यावर्त के आर्यों में आकाशी देवताओं की उपासना प्रचलित थी। संभव है वीरपूजा भी उस उपासना का प्रधान अंग रही हो। भौतिक शक्तियों में उनकी प्रबल उपास्य बुद्धि थी और इन सब देवताओं के राजा अथवा एकाधिपति वरुण माने जाते थे। वरुण के राजत्व का वैदिक मन्त्रों में कई बार उल्लेख मिलता है । वरुण की उपासना आकाश की सर्वप्रथम शक्ति के रूप में चन्द्रमा की उपासना से संबद्ध थी। मित्र के रूप में तो सूर्य की उपासना प्रचलित थी ही। पर आकाश का, जो इस संसार के बावरण रूप में दिखायी पड़ता है, सम्पूर्ण विभव नक्षत्र मण्डल के साथ रात्रि में ही 8. And it becomes patent that probably a majority of the common names, which are sweepingly set down as names of feinds and other supernatural agents, really are those of tribes, 1 eoples and men while many an alleged atmospheric battles turns out to have been an honest sturdy, hand to hand conflict between Lonafidc mortal champions (Vedic India 303). प्राचीन आर्यावर्त : १२५