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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२६७

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हाशिये की टिप्पणियाँ श्री विजेन्द्रलाल राय की कालिदास और भवभूति नामक पुस्तक के हिन्दी अनुवाद (मई १९२१ में प्रकाशित) के कुछ पृष्ठों पर अधोलिखित टिप्पणियां हैं । किसी अन्य पुस्तक पर पूज्य पिता श्री ने कोई टिप्पणी नहीं लिखी है, इसलिए भी इनका विशेष महत्त्व है। जहाँ, श्री राय शेक्सपीयर के द्वारा प्रस्तुत चरित्र-संरचना के सन्दर्भ में कालिदास के चरित्रों पर तुलनात्मक-प्राय विचार करते हैं वहां (पृष्ठ २२ पर) टिप्पणी है- "शेक्सपीयर के पात्र बलवती वासनाओं के मानव रूप हैं। कालिदास के पात्र मनुष्य हैं, उनकी वासनाओं का उन्हीं में अवसान है।" पृष्ठ ६१ की टिप्पणी है -"स्त्री का प्रकृत रूप और वास्तविक सत्ता जिसके आगे पुरुष को सिर झुकाना पड़ेगा ही-वह क्या है ? गोद में बालक लिए स्त्री।" कामायनी में श्रद्धा, मनु और मानव के प्रसंगों के उपचार में ऐसी ही दृष्टि है। दुष्यन्त और शकुन्तला के पुनर्मिलन में भरत के पहले आने के प्रसंग पर पृष्ठ ६३ की टिप्पणी है-"मिलन का आरम्भ भरत से कराया है, यह भी स्नेह का वर्द्धन है।" शाकुन्तल के तृतीय अंक में शकुन्तला की ओर रो दुग्यन्त के प्रान प्रणय-निवेदन को श्री राय उचित नही मानते और उसे कुलटा का लक्षण तक कह देते हैं और, मिरांडा के द्वारा फडिनांड के प्रति उद्गार को प्रणय की भिक्षा नहीं प्रत्युन दान मानते हैं। पृष्ठ ७० के इस प्रसंग पर टिप्पणी है-"उदार द्विजेन्द्र यहाँ गरम हो गए हैं। पाश्चात्य सभ्यता की दुहाई देकर उन्होंने यही कहा है कि स्त्री को प्रेम-याचना का अधिकार नहीं, यदि करे तो निर्लज्ज है।" इस टिप्पणी के सन्दर्भ में 'काव्य और कला निबन्ध के पांचवें अनुच्छेद में दार्शनिक संस्कृति से रुचिभेद का उल्लेख करते कहा गया है-"पुरुष सर्वथा निलिप्त और स्वतन्त्र है। प्रकृति या माया उसे प्रवृत्ति या आवरण में लाने की चेष्टा करती है। इसलिए आसक्ति का आरोपण स्त्री में ही है। स्त्रीत्व में प्रवृत्ति के कारण नैसर्गिक आकर्षण मानकर उसे प्रार्थिनी बनाया गया है।" परिशिष्ट १६७