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सिक्के बिना संवत् के हैं। इससे प्रतीत होता है कि समुद्रगुप्त के.सामने क्षत्रपों का प्रताप निस्तेज हुआ, फिर बिना संवत् के सिक्के वहाँ प्रचलित हुए। तात्पर्य,'उक्त समुद्रगुप्त के समय ३८५ ई० के पूर्व ही सौराष्ट्र की शकशाखा का ह्रास हुआ। चंद्रगुप्त का राज्यारोहण काल ३८० ई० मानते हैं। परन्तु उसका सबसे पहला शिलालेख उदयगिरि का गुप्त संवत् ८२ (ई० ४०१) का मिलता है। सौराष्ट्र के जो सिक्के चंद्रगुप्त के माने जाते है वे गुप्त संवत् ९० (ई० ४०९) के हैं, इसके पहले के नहीं। शक क्षत्रपों के अंतिम सिक्कों का समय ३११-३८९ ई० है ।' अच्छा, इन सिक्कों के बाद (३८९ से लेकर ४०९ ई०) २० वर्ष तक किन सिक्कों का प्रचार रहा, क्योंकि चंद्रगुप्त के सिक्कों के देखने से उसका सौराष्ट्र-विजय ४०९ ई० से पहले का नहीं हो सकता (जब के उसके सिक्के हैं) फिर इधर उदयगिरि वाला लेख भी ई० ४०१ के पहले का नहीं है। तब यह महज ही अनुमान किया जा सकता है कि चंद्र गुप्त का राज्यारोहण-काल ४०० ई. के समीप होगा। परन्तु ३८९ ई० तक के शक-क्षत्रपों के सिक्कों के मिलने के कारण चंद्रगुप्त को ही शकारि विक्रमादित्य प्रमाणित करने के लिए चंद्रगुप्त का राज्यारोहण-काल ३८५ या ३८० ई० में मान लिया जाता है जिसमें सौराष्ट्र-विजय का श्रेय उसी को मिले । वास्तव मे ममुद्रगुप्त के ही समय में शक-विजय हुआ। हरिषेण की विजय-प्रशस्ति में समुद्रगुप्त के द्वारा पगजित राजाओं की नामावली में रुद्रदेव का भी उल्लेख है और रुद्रदेव सौराष्ट्र के शक क्षत्रपों में रहा होगा। चंद्रगुप्त ने भी पिता के अनुकरण पर विजय-यात्रा की थी, जैसा कि उसके उदयगिरि वाले शिलालेख से स्पष्ट है परन्तु उसके शासनकाल में मालव स्वतंत्र था। समुद्रगुप्त के बाद मालव और सौराष्ट्र स्वतंत्र राष्ट्र गिने जाते थे। गंगधार और मंदसोर के दोनों शिलालेखों को देखने से सूचित होता है कि नरवर्मा और विश्ववर्मा मालव के स्वतंत्र नरेश थे। कुमार गुप्त के समय मे बंधुवर्मा ने संभवतः ४२४-४३७ ई० के बीच गुप्त-साम्राज्य के अधीन होना स्वीकार किया। ___चंद्रगुप्त के शक-विजय का उल्लेख बाणभट्ट ने भी किया है-'अरिपुरे परकलत्रकामूकं कामिनीवेशश्चन्द्रगुप्तः शकनरपति अशातयत् ।' यह शक विजय किस प्रांत में हुआ, इसका ठीक उल्लेख नही पर कुछ लोग अनुपान करते हैं कि कुशानों के दक्षिणी शक-क्षत्रप से ४०० ई० के समीप प्रतिष्ठान का उद्धार चंद्रगुप्त ने किया। जब, आंध्र राजाओं से लड-झगड़ कर वे शक क्षत्रप स्वतंत्र हो गये थे तब १. Ropson, catalogue, 194 F., No. 907 (राज्ञः महाक्षत्रपस्य स्वामि सत्यसिंहस्य पुत्रस्य राज्ञ. महाक्षत्रपस्य स्वामि रुद्रसिंहस्य) तुलनीय - इलाहाबाद स्तम्भलेख का रुद्र देव प्रथम और इससे भिन्न है। (सं०) ३० :प्रसाद वाङ्मय