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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/२९

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शती'-एक प्राचीन गाथाओं का संग्रह-'हाल' भूपति के नाम से उपलब्ध है। पैठन में इसकी राजधानी थी। इसका समय ईसवीय सन् की पहली शताब्दी है । महापहोपाध्याय पंडित दुर्गाप्रसाद ने अभिनन्द के रामचरित से-हालेनोत्तम पूजयाकविवृष श्रीपालितो लालितः ख्याति कामपि कालिदास कवयो नीता शकारातिना-उद्धन करते माना है कि श्रीपालित ने अपने राजा 'हाल' के लिए यह 'गाथा शप्तशती' बनायी। इसमें एक गाथा पांचवे शतक की है-- संवाहण हरस तोसिएण देन्तेह तुहकरे लक्खम् । चलणेण विक्रमादित्त चरितं अणु सिक्खिअंतिस्सा ॥ ६४ ॥ ईसा-पूर्व पहली शताब्दी में एक विक्रमादित्य हुए, इसके मानने का यह एक प्रमाण है। जैन-ग्रंथ कालकाचार्य-कथा में उज्जयिनी-नाथ विक्रम का मध्यभारत के शकों को परास्त करना लिखा है । प्रबन्धोष में लिखा है कि महावीर स्वामी के मोक्ष पाने पर ४७३ वर्ष बाद विक्रमादित्य हुए । भारत को परम्परागत कथाओं में प्रसिद्ध है कि विक्रमादित्य गन्धर्वसेन का पुत्र था। टाड ने राजस्थान के राजकुलों का वर्णन करते आ यह लिखा है कि तुअरवंश पाण्डव वंश की एक शाखा है, जिम में संवत् प्रचारक विक्रम और अनंगपाल का जन्म हुआ था। प्राचीन ऐतिहामिक ग्रंथ 'राजावली' में दिल्ली के राजाओं का वर्णन करते हुए लिखा है कि दिल्ली के राजा राजपाल का राज्य कुमायूं के पहाड़ी राजा शुकवन्त ने छीन लिया। उसे विक्रमादित्य ने मारकर दिल्ली का उद्धार किया। इधर प्रसिद्ध विद्वान् स्मिथ ने लिखा है कि ईसा के पूर्व दूसरी शताब्दी में शकों का उत्थान हुआ जो भारत में उसी के लगभग घुसे। Branches of the Barbarian stream which penetrated the Indian passes, deposited, settlements at Taxiia in the Punjab and Mathura on the Jamuna. Yet another section of the horde at a later date perhaps about middle of the first century after Christ pushed on southwards and occupied the peninsula of Sourashtra or Kathiawarı founding a 'sak' dynasty which lasted until it was destroyed by Chadragupta about A D. 390 The Satraps of Mathura were closely connected wito those of Taxila and belong to the same period about 50 B. C. or later.' पिछली शक-शाखा के संबंध में, जो सौराष्ट्र गई, यहाँ कहा जा रहा है कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने उमे निर्मूल किया, पर वास्तव मे ३८५ ई. तक समुद्रगुप्त जीवित थे और उन्हीं के समय मे ३८२ ई. तक के शक मिस्के मिलते हैं। बाद के स्कंदगुप्त विक्रमादित्य-परिचय : २९