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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/३४३

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जी की महत्ता, उनकी कृतियों की साहित्यिक श्रेष्ठता एवं व्यक्तिगत-रूपेण उनको जानने की उत्सुककता तब हृदयं में स्थान नहीं पा सकी; उनका ख्याल भी नहीं आथा। किन्तु जब बरसों बाद सन् १९२७ में, खड़ी बोली के कट्टर एवं उसके साहित्य को तुच्छ समझनेवाले भी 'सुधा' के प्रथम अंक में, समालोचक द्वारा उद्धृत 'प्रसाद' के 'आंसू' के कुछ छन्दों को पढ़कर उस कवि की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सके, तब तो सहसा प्रसादजी के प्रति श्रद्धा का संचार हुआ और उनके 'आंसू' को अनेक बार पढ़ा। नवयुवकों के जीवन में एक वह समय आता है, जब वे प्रेम के प्यासे होते हैं, दूसरों का प्यार पाने को ललचते हैं, उसके लिए भरसक प्रयत्न करते हैं; जब उनकी नन्हीं-नन्ही छातियों में भावुकता का सागर हिलोरें मारता है, उनका छोटा- सा दिल, छोटी-छोटी-सी बातों से ही आहत हो जाता है; जब अपने दिल की बात दूसरों से कहने को अपने छोटे-से महत्त्वहीन रहस्यों को भी दूमरों को बताने के लिए वे तड़पने लगते है; जब अपने प्यारों से वियोग की आशंका-मात्र से ही जी तड़प उठता है. एक बारगी गला मंध जाता है, आँखों में आँसू छलछला आते हैं और जी भी अनमना हो जाता है-तब जिस जल्दी के साथ मित्रता होती है, कुछ ही क्षणों में पुनः अभिन्न-हृदयता स्थापित हो जाती है, एक-दूसरे में प्रगाढ़ विश्वास पैदा हो जाता है-उतने ही वेग मे शत्रुता भी ठन जाती है, बिना किसी कारण-विशेष के ही एक-दूसरे में खिंच जाती है, जीवन-भर के लिए मनोमालिन्य-सा होता जान पड़ता है; जब ज़रा-ज़रा-सी बात पर रूठने में हिचक नही होती और जब मानने में भी देरी नहीं लगती-उसी भावुकतापूर्ण काल मे 'आंसू' के छन्दों ने मेरे दिल पर गहरा रंग जमाया और जो छाप समय दिल पर बैठी, वह आज भी मिटी नही। अब भी जब कभी जीवन में सूनेपन का-सा अनुभव होता है, जी अनमना हो जाता है, पहल में कुछ तड़प-सी मालूम होती है। प्रेम में जब विरक्ति का संचार होता है और दूसरों की बेरुखी एवं उनकी वह स्वार्थ-भावना जब दिल पर चोट पहुंचाती है, तब अनजाने ही आँखों में आंसू भर आते हैं, होंठ आप-ही-आप कहने लगते हैं- अवकाश भला है किनको, सुनने को करुण कथाएं; बेसुध जो अपने सुख से, जिनकी हैं सुप्त व्यथाएँ । और जब दिल आँसू का एक चूंट पीकर संतोष कर लेता है, तब 'आंसू' की कुछ पंक्तियां ही दिल को तसल्ली देती हैं। यही कारण था कि अपने मित्रों को भी अपनी प्यारी वस्तु भेंट करने को जी चाहने लगा था, एवं तब 'आंसू' की कई प्रतियां मंगवाकर उन्हें अपने मित्रों में बांटा, उनके सम्मुख उस कवि की भावुकता की व्याख्या की, अपने दिल पर होने संस्मरण पर्व : ३९