पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/३६२

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. बनारस की चौक की कोतवाली के पीछे मसजिद के सामने नारियल बाजार मे उनकी लगभग सवा सौ वर्ष की पुश्तैनी दूकान जर्दा सुर्ती की है। उनके सामने के तख्ते पर सफेदा बिछवाकर वे प्रायः नित्य संध्योपरान्त रात्रि में बैठते थे। उसी पर एक कोने में पानवाला (बैजनाथ) भी अपनी चंगेली लिये बैठता था। उसके बीड़े और दूकान के जाफरानी जर्दे का दौर लगभग दस-ग्यारह बजे रात तक चलता रहता था। हिन्दी साहित्य के बड़े-बड़े घुरन्धर महारथी वही आकर उनसे काव्य-शास्त्र विनोदेन समय-यापन करते थे। हिन्दी संसार के सुप्रसिद्ध कलाविद् राय कृष्णदासजी, श्री प्रेमचन्दजी, महाकवि रत्नाकर, प्राध्यापक लाला भगवानदीनजी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल आदि महानुभाव वहाँ प्राय आसन ग्रहण करके साहित्य की शास्त्रीय समस्याओं पर विचार-विमर्श और भाव-विनिमय करते थे। रायसाहब प्राचीन भारतीय शिल्पकला और मूर्तिकला पर, लाला भगवानदीनजी शब्दों की व्युत्पत्ति और निरुक्ति पर, रत्नाकरजी ब्रजभाषा-साहित्य की बारीकियों पर आचार्य शुक्लजी संस्कृत साहित्य की विविध प्रवृत्तियो पर तथा प्रेमचन्दजी कथा-साहित्य के मनो- वैज्ञानिक पक्ष पर जब बातें करने लगते थे तब प्रसादजी की सरस्वती का मुखर होना देखकर चकित रह जाना पड़ता था । वैदिक ऋचाएं और उपनिषदों के लच्छेदार वाक्य तो उन्हे कण्ठस्थ थे ही, संस्कृत महाकवियों ने किस शब्द का कहां किस अर्थ में कैसा चमत्कारपूर्ण प्रयोग किया है-इसको भी वे सोदाहरण उपस्थित करते चलते थे। शालिहोत्र और आयुर्वेद शास्त्रों के महत्त्वपूर्ण प्रकरणों पर उनके प्रवचन सुनने से उबके विस्तृत ज्ञान पर आश्चर्य होता था। हाथी, घोड़ा, गाय आदि के लक्षणों की परख और उनके स्वामियों पर उनके शुभाशुभ लक्षणों के अनिवार्य प्रभाव का वर्णन उनसे मुनने पर एक अत्यन्त रोचक और विस्मयकारी प्रसंग उपस्थित हो जाता था। इसी प्रकार हीरा, मोती, मूंगा आदि रत्नो के गुण-दोषों के प्रभाव का वर्णन भी शास्त्रीय प्रमाणों के साथ करते थे। एतद्विषयक ग्रन्थों के मौखिक उद्धरण सुनकर उनकी स्मरणशक्ति की प्रखरता पर बड़ा कुतूहल होता था। प्रसादजी हलवाई-वैश्य थे। अपने हाथों बहुत ही स्वादिष्ट भोजन बनाते थे। भोज आदि में यदि एक सो अतिथियों को भोजन कराना है तो बादाम और पिस्ते की बर्फी वनवाने में कितना मेवा और मावा लगेगा, कितनी चीनी और केसर- इलायची पड़ेगी, इमका चिट्ठा भी तैयार करा देते थे और जबानी ही बोलकर लिखवाते थे। इसी तरह और-और मिठाइयों के सामान की मिकदार बतला देते थे। भोटानी सौदागर जब शिलाजीत, पहाड़ी शहद, कस्तूरी आदि बेचने आते थे तब उनकी चीजों की परीक्षा करने मे उद्धृत कोशल का परिचय देते थे। भंग बूटी तो स्वयं बहुत अच्छी वनाते और मित्रों को पिलाते थे। अपने घरेलू व्यवसाय के ५८:प्रसाद वाङ्मय