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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/३७०

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'कामायनी' एक बेजोड़ रचना है। उनकी 'आंसू' अपने ढंग की अकेली ही रचना है- उससे प्रेरणा पाकर अनेक कवियों ने इस विषय पर कलम उठाई है। प्रसादजी में सभी सद्गुण थे। वे मितभाषी, उदार, धीर, परोपकार-परायण, निरभिमान, ईर्ष्या-द्वेषरहित थे। उनकी बुद्धि कुशाग्र थी। उनकी धारणा शक्ति अपूर्व थी। उनकी सूझबूझ अनुपम थी। उनका ज्ञान विस्तृत था। वे मित्र-वत्सल थे ! शत्रु को भी क्षमा कर देना उनकी विशेषता थी। उनकी प्रतिभा गुरुदेव रवीन्द्र के समान बहुमुखी थी। वे आस्तिक सद्गृहस्थ थे । साहित्य और संगीत, दोनों मे उनकी रुचि थी। वे भारतीय संस्कृति के भक्त थे-अपने देश का उन्हे अभिमान था। उनकी-सी विशेषताएँ किसी एक मनुष्य मे बहुत कम मिलती है। हो सकता है, किसी को मेरे कथन मे अत्युक्ति प्रतीत हो, पर मैं अपने पाँच वर्ष के निकट सपर्क के अनुभव पर भरोसा करता हूं और जानता हूँ कि मेरा कथन अक्षरशः सत्य है- प्रसाद जैसा सामाजिक-साहित्यिक कही शताब्दियो बाद एक-आध पैदा होता है, और जिस देश में पैदा होता है, उसे धन्य बना देता है ! हम अभी तक प्रसाद के महत्व को, प्रसाद की विशेषताओ को, प्रमाद-साहित्य के गौरव को अच्छी तरह समझ नही पाये है। समझानेवाला भी कोई सामने नहीं आया है। लेकिन मैं इससे निराश नही हूँ। कभी-न-कभी तो प्रसाद का, प्रसाद के साहित्य का मूल्य समझने-समझाने वाला कोई पैदा ही होगा- कालोह्ययं निरवधिविपुला च पृथ्वी । ६६: प्रसाद वाङ्मय