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बोले-"हमने तो कुछ नहीं किया ! सिर्फ मां को इतना बता दिया कि बनारस में दंगा हो गया है, इसलिए अभी हम बनारस नहीं जाएंगे।" प्रसादजी और हम लोग हंसने लगे। मुकुन्दीलाल जी ने घूमने-फिरने का कार्यक्रम बनाया और दोपहर के बाद मोटर से हम लोग मनमाने ढंग से सैर करते रहे। ____ कई दिन के बाद बनारस में दंगा शान्त हुआ। इस बीच में हम लोगों का एक फोटो-चित्र भी लिया गया, जिसमें प्रसादजी, मैं, मुकुन्दीलाल जी, रत्नशंकरजी आदि हैं। विदाई का निश्चित दिन आ गया। फिर रेल का सेकेंड क्लास का डिब्बा रिजर्व हुआ और उसके साथ ही एक अन्य डिब्बा नौकरों के लिए था। प्रसादजी के साथ सामान बहुत था, जो एक अन्य डिब्बे में रहा । प्रसादजी के डिब्बे में कई बिस्तरे और दो-तीन सन्दुक थे, जिनमें हीरे-जवाहरात और कुछ मूल्यवान चीजों का भी एक सन्दूक था, जिसे वे काशी से अपने साथ लाये थे। इस सन्दूक की रखवारी के लिए एक नौकर सदा उसके पास बैठा रहता था। ट्रेन जुल का समय हो गया। मैंने और मुकुन्दीलाल जी ने प्रसादजी से प्रेमपूर्वक विदाई ली। x प्रयाग पहुँचने पर 'सरस्वती' के सम्पादक श्रद्धेय पं० देवीदत्त जी शुक्ल से ज्ञात हुआ कि 'लीडर' प्रेस से निकलनेवाला हिन्दी का साप्ताहिक 'भारत' अब दैनिक होनेवाला है । 'चाँद' के सम्पादक मुंशी नवजादिक लालजी से भी यही खबर मालम हुई। उन्होंने यह भी बताया कि 'लीडर' की प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष काशी के रईस रायकृष्णजी हैं। मैं काशी के लिए रवाना हुआ और वहाँ प्रसादजी से मिला। उन्होंने भी दैनिक 'भारत' के प्रकाशित होने की बात बताते हुए कहा कि “अब कलकत्ते या बम्बई जाने का विचार मत करो। प्रयाग से दैनिक 'भारत' निकलनेवाला है, उसमें काम करो!" प्रसादजी ने कुछ हास्य के साथ प्रेमपूर्वक कहा --"तुम्हारा उद्देश्य तो अब किसी पत्र में ही काम करके जीवन बिता देना है। अगर 'आज' में नहीं करना है तो 'भारत' में करो। रायकृष्णजी 'लीडर' के चेयरमैन हैं । हम रायकृष्णदास से कह देंगे।" ( रायकृष्णदास जी चेयरमैन रायकृष्णजी के चचेरे भाई थे और प्रसादजी तथा रायकृष्णदासजी में घनिष्ट मैत्री थी) तीन दिन के बाद राय कृष्णदासजी अपनी मोटर लिये सायंकाल प्रसादजी के संस्मरण पर्व : १०५