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कभी कुमार्ग का अनुसरण नहीं किया। उनका घरेलू और बाहरी जीवन बिल्कुल निष्कलंक-पवित्र था। सभी तरह के लोग उनसे मिलते, पर वे किसी से न मिलते थे । अनेक सज्जनों के मध्य में बैठे हुए, वे जैसे सबसे अलग एफ राजकुमार से लगते थे। प्रसाद जी का सामाजिक और धार्मिक जीवन यद्यपि प्राचीन परम्परा से पूर्ण था, पर वे युगधर्म के साथ चलना जानते थे; और नवीन सुधारों को पसन्द करते थे। वे राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय विषयों में पूरी दिलचस्पी लेते। लेनिन के सोवियत रूस और उसके साम्यवादी सिद्धान्तों को वे अच्छी तरह जानते और इटली के मुसोलिनी और जर्मनी के हिटलर के फासिस्टवाद और नाजीवाद से परिचित थे। सन् १९१९ में प्रथम विश्वव्यावी महायुद्ध के समाप्त होने पर (ब्रिटिश उपनिवेश) दक्षिण अफ्रीका के प्रधान मंत्री जनरल स्मट्स ने कहा था - "Humanity has beaten its tenets, and is once more on the march." ___ इस पर प्रसाद जी ने हंस कर कहा--"इस 'ह्युमनेटी' का मतलब समझे ?" मैंने कहा-"क्या ?" प्रसाद के हाथ में उस समय अंग्रेजी का "लीडर" पत्र था। उन्होंने जनरल स्मट्स के उस वाक्य को विनोदपूर्ण मुद्रा में पढ़ते हुए कहा- "इसका मतलब गोरों की 'ह्युमेनेटी' से है । बेचारे कालों में 'मार्च' करने की कहां शक्ति है।" ब्रिटिश प्रधान मंत्री लायड जार्ज, भारत मंत्री मि० मान्टेगू, अमेरिकी राष्ट्रपति उडरो विल्सन, फ्रेन्च प्रधान मंत्री क्लीमेन्सू और प्रधान सेनापति मार्शल फाश आदि के मन्तव्यों और हथकंडों पर प्रसादजी व्यंग्यात्मक टीका-टिप्पणियां करके हंसतेहंसाते थे । चीन में उस समय जापान की बड़ी उग्र आक्रामक नीति थी, और भारत के प्रायः सभी राष्ट्रीय और अन्य समाचारपत्र जापान को कोसते थे, इस विषय पर प्रसादजी जापानी नीति के कुछ पक्षपाती थे । मैंने कुछ चकित भाव से कहा-"आप ही एक ऐसे व्यक्ति मिले जिसने जापान के पक्ष में इतनी बातें कही। यह मुझे नहीं मालूम था कि आप जापान के इतने पक्षपाती हैं।" उन्होंने जैसे कुछ झुंझला कर कहा-"नहीं, मैं जापान के पक्ष में कुछ नहीं कह रहा हूँ। एशिया के भविष्य का ध्यान करो, जव पूर्व और पश्चिम का महायुद्ध होगा तो उस सनय एशिया की लड़ाई लड़ने वाला कौन होगा ?........" किन्तु अन्न का जापान तब से बहुत भिन्न है। आज जापान द्वितीय महापुद्ध में हारा हुआ, अमेरिका के प्रवल चंगुल में फंसा हुआ है। किन्तु, साथ ही पूर्व-पश्चिम के आगामी संग्राम का मानचित्र भी तब से आज बिल्कुल बदला हुआ है। अब जापान का स्थान, विशाल सोवियत रूस के साम्यवादी तंत्र ने ले लिया है। किन्तु स्मरण रहे कि तबका साम्राज्यवादी जापान भी पश्चिमी राष्ट्रों का ऐसा प्रबल संस्मरण पर्व : १०९