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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४२२

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हमारे लिए उनका व्यक्तित्व एक महान आदर्श के रूप में था। हंसी में हम लोग भी उनके साथ रहे, परन्तु यह बाद को समझ में आया कि बनारसी भाषा में 'सारे' का अर्थ 'साले' होता है। लड़के के सब परचे हाथों-हाथ बिक गये। एक परचा हमने भी लिया। पैसे व्यास जी ने दिये और उन्होंने उसे बाबू साहब के सुपुर्द कर दिया। पीछे से एक पुलिसवाले ने लड़के पर कई डंडे बरसाये और जब वह 'हाय' कह कर गिरा तो वह उसे धक्का देता हुआ चौक थाने की ओर ले चला। पुलिस वाले को देखकर बाबू साहब ने परचा गद्दी के नीचे सरका दिया था, परन्तु वह उस समय कुछ व्यथित जान पड़े। उन्हें यह आघात वहुत समीप से लगा था। हमने देखा कि उनकी आँखों में आंसू थे। प्रसंगवश बताता हूँ कि उस समय मै पन्द्रह, व्यास जी अठारह और गौड़जी तेईस-चौबीस साल के थे । गौड़जी डी०ए०वी० हाईस्कूल में अध्यापक थे। मैं सातवें में पढ़ता था और वह मेरे क्लास टीचर थे। व्यास जी मेरे सहपाठी और मित्र थे और बाबू माहब हम तीनों के पूज्य थे। कभी काशी विश्वविद्यालय, नगवा से शिवदाम गुप्त 'कुसुम' आ जाते, कभी शिवपूजन या रामचन्द्र शुक्ल आ जाते और फिर जम कर साहित्य चर्चा होती। बोलने का काम अधिकतर और लोगों को ही करना पड़ता था। बाबू साहब बहुत कम बोलते थे, परन्तु जो कहते वह कोई मुग्धकारी बात ही होती थी। _____उस दिन भी मैं, व्यास जी और मास्टर साहब (गौड़जी) ही दूकान पर बैठे थे कि एक लड़का गाता हुआ परचा बेचने आया। हमने उसे देखते ही स्वयं दूकान से उतर कर एक परचा मोल ले लिया था। परचे मे किसी टोड़ी रायसाहब और किसी खानबहादुर की खबर ली गयी थी जो कांग्रेसियों पर और अधिक दमन करने के लिये पुलिस को विवश कर रहे थे और चारों ओर मारपीट और गिरफ्तारियों का समाचार मिलता था। (टोड़ी से अभिप्राय राय टोडरमल से है । सं०) हमने वह परचा बाबू साहब की गद्दी के नीचे छिपा दिया था। लड़का सुरीले गले से गा रहा था और उसके परचे हाथों हाथ बिक ही रहे थे कि उसका भी पिछले दिन वाले लड़के जैसा ही हाल हुआ और पुलिस उसे पकड़ कर ले गयी। बाबू साहब उस समय तक उस लडके की पीठ पर टकटकी लगाये रहे जब तक वह नरियल बाजार का मोड़ घूम कर अदृश्य नहीं हो गया। परन्तु वाह रे उसका जीवट कि उम पर जितनी मार पड़ती उतना ही तार स्वर से वह परचे मे छपे गीत की खा साहब और 'रायबहादुर' वाली कड़ी को गाता हुआ थाने की ओर घसिट रहा था। वह गा रहा था, 'अंगरेजी रंगरेजवन के दल बादल आयल बाट । रंगने को धरा रुधिर से बदरा गदरायल बाटै । ११८ : प्रसाद वाङ्मय