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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/४५२

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की किताब अच्छे दाम में खरीद लेगे। मुंशीजी गरीबी की अवस्था में थे। उनके पास कोई ऐसी चीज नही थी, जिसे बेचकर उनका दारिद्र्य दूर हो। १०) ३० महाराज बनारस के यहां से उन्हें 'पेन्शन' मिलती थी। उससे काम चलता नहीं था। उनकी दृष्टि मे एक अमूल्य हस्तलिखित पुस्तक, उनके वालिद के समय की उनके पास थी। उसे ही वे अपनी सबसे बड़ी सम्पत्ति समझते थे। उस हस्तलिखित पुस्तक में कुछ दवाओ के नुस्खे, उर्दू की शायरी और गिरधर की कुंडलियां लिखी हुई थीं-जिसे मुशीजी कहते थे कि उनके वालिद की लिखी है और अत्यन्त प्राचीन है; तीन-चार सौ रुपये मिलने पर वे उसे वेच देगे। ___ मैंने मुन्शीजी को विश्वास दिलाया कि अमृतलाल इसी कार्य के लिए आये हैं और किताब का काफी दाम दिला देगे। मुन्शीजी को भरोसा हो गया। अमृत ने पूछा-आपकी पुस्तक कितनी प्राचीन है। बहुत ज्यादे पुरानी है .-मुन्शीजी ने उत्तर दिया। उन्होंने सुन रखा था कि पुरानी चीजो का मूल्य अधिक मिलता है । अमृत ने पूछा-कितने वर्ष पुरानी है, एक अन्दाज से बतलाइये ! अरे यही, एक तीन सौ वर्ष पहले की होगी -मशीजी ने कहा। मैंने पूछा-मुशीजी, पुस्तक तो आपके वालिद की लिखी है न ? 'हां, मेरे वालिद ने खुद अपनी कलम से लिखा है। वह तो शायर भी थेमुन्शी ने कहा। अमृत ने पूछा - उनके इन्त काल को कितना समय हुआ ? ' हुआ होगा ५० वर्ष-मुन्शी ने सिर खुजलाते हुए बतलाया। ज्ञानचन्द ने उत्सुकता मे पूछा-और उम किताब को कितनी उम्र मे लिखा था ? अपनी जवानी से लेकर बगबर लिखते गये-उन्होने गम्भीरता से उत्तर दिया। सब लोग अपनी हंसी दबाये थे-खुलकर हंसने पर फिर मुन्शीजी कुछ नहीं बताएंगे। प्रसादजी आड मे छिपे थे। मुन्शीजी को पता नही था कि वे वही हैं । इस तरह सबको भेद प्रकट हो गया कि पुस्तक ६०-७० वर्ष से अधिक पुरानी नही है। मैंने कहा-मुन्शीजी, उसकी कोई शायरी इनको सुगा दीजिये। मुन्शी ने कहा-मैं किताब ही सबेरे लाकर इनको दिखला दूंगा। अमृत ने कहा-कुछ याद हो तो सुनाइये न ? सब लोगों के आग्रह पर बड़े संकोच से मुन्धीजी ने कुछ पंक्तियां पढी१४८ : प्रसाद वाङ्मय