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राज्यश्री (प्राक्कथन) राज्यश्री और हर्षवर्द्धन से सम्बन्ध रखने वाली घटनाओं का आधार हर्षवर्द्धन के राजकवि बाण का बनाया हुआ हर्षचरित और चीनी यात्री सुएनच्वाङ्ग का वर्णन है। हर्षचरित का वर्णन अपूर्ण है, अनुमान होता है कि ग्रन्थ की पूरी प्रति उपलब्ध नही, या वह उस कवि की रचना कादम्बरी की भांति अधूरी-सी रही। कुछ विशेष घटनाबों का वर्णन चीनी यात्री ने किया है। बौद्ध-धर्म का विशेष पक्षपाती होने के कारण वह उन घटनाओं को नहीं छोड़ सका, जो वौद्ध-धर्म के अनुकूल हुई थी। उस समय गुप्तों का प्राधान्य नष्ट हो चुका था। छठी शताब्दी में मालव के यशोधर्मदेव ने जब हूण मिहिरकुल को परास्त किया, तो साम्राज्य-शक्ति मगध से हटकर मालव की शरण में चली गयी, परन्तु यशोधर्मदेव की वंश परम्परा में वह स्थिर न रह सकी। इधर, जो हूण भारत की सीमा के भीतर घुस आये थे, वे कभी न कभी उपद्रव मचा ही देते, इस कारण स्थानीय राज्यों को उनसे बराबर छोटामोटा युद्ध करना ही पड़ता। सम्भवतः भारत के उत्तर-पश्चिमी प्रान्त से उनका आतंक निर्मूल नही हुआ था, यद्यपि वे अब भारत-साम्राज्य के विजेता नहीं रहे। वह सातवीं शताब्दी का प्रारम्भ था, जब स्थाण्वीश्वर के राजवंश ने प्रबलता प्राप्त की, शक्ति-सञ्चय करके वे हूणों से लड़े। कान्यकुब्ज में मोखरियों का प्राधान्य था और मालव में गुप्तवंश के कुछ फुटकल राजकुमार प्रबल हो गये थे। यशोधर्म का साम्राज्य विभक्त कर स्थाथ-स्थान पर नवीन राजवंश अधिकार जमा रहे थे। इधर सिकुड़ कर मगध में गुप्तवंश के महाराजाधिराज अपनी मान-मर्यादा लिये दिन बिता रहे थे। फिर भी गुप्तों के राजकुमारों के ही अधिकार में पूर्वी मालव, मगध और गौड़ था । ___ गौड़ के एक राजकुमार ने मौखरी और वर्द्धनों की सम्मिलित राजशक्ति को उलट देने का संकल्प लिया। बाण ने इसका नाम नरेन्द्रगुप्त लिखा है परन्तु सुएनच्वांग के आधार पर बोधिदम को उखाड़ने याला शशांक ही गौड़-विद्रोह का कारण माना जाने लगा है, यद्यपि अभी तक यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित नहीं हुआ है कि नरेन्द्रगुप्त और शशांक एक ही व्यक्ति हैं । कुछ लोग हर्षवर्द्धन की माता का नाम ही राज्यश्री-प्राक्कथन : ५