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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५०९

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रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र में लिखा अमर, रह गया राम-रावण का अपराजेय समर । मुझे लगा, वे प्रेमचंदजी के जीवन-संघर्ष की परिणति को देखकर अपने जीवनसंघर्ष के साथ मिलाते हुए उसे किसी बड़े उदात्त रूप में परिणत करना चाहते हैं। मेरे सामने मेरे निवास पर केवल ये दो ही पंक्तियां लिखी गयी, फिर वे लखनऊ चले आये। निरालाजी का उपर्युक्त लेख प्रकाशित हुआ, तो साहित्यिक क्षेत्रों में कुछ हलचल भी हुई। संभवतः उसी को पढ़कर जैनेन्द्रजी, प्रेमचंदजी को देखने दिल्ली से वाराणसी आये। उन दिनों जनार्दन राय नाम के एक उदीयमान कहानी लेखक 'हंस' के पन्नों पर उभर रहे थे। वे उदयपुर के निवामी थे। काशी विश्वविद्यालय में एम० ए० अन्तिम वर्ष के छात्र थे। एक दिन विश्वविद्यालय में ही उनसे समाचार मिला कि अब कोई आशा नही है। दूसरे दिन प्रातःकाल जब हम लोग विश्वविद्यालय के अपने विभाग में, कक्षा में गये, तो देखा हमारे आचार्यगण उदास बैठे हैं। आचार्य श्यामसुन्दरदास ने प्राध्यापकों और छात्रों को एक कक्ष में आने के लिए कहा। उन्होने बताया कि आज रात्रि के अन्तिम प्रहर में उपन्यास-सम्राट् प्रेमचंदजी का निधन हो गया है। तुम सब लोग अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए उनके निवास पर जाओ, आज कक्षायें नही होंगी। आचार्य प्रवर डॉ० पीताम्बर दत्त बड़श्वाल ने शोक प्रस्ताव रखा था। उनके संबंध में कुछ बोले भी थे। जहां तक मुझे स्मरण है, उस दिन के किसी पत्र में प्रेमचंदजी के निधन का कोई समाचार नहीं निकला था। __ हम सब छात्र विह्वल होकर प्रेमचंदजी के निवास स्थान पर पहुंचे। घर में कोहराम मचा हुआ था। शिवरानी देवी अत्यंत करुण रोदन कर रही थी। प्रसादजी वहाँ प्रातःकाल होते ही पहुंच गये थे। आचार्य नन्ददुलारे वा पेयीजी भी हम लोगों से कुछ पहले पहुंचे थे। जैनेन्द्रजी, जनार्दन राय, परिपूर्णानन्द वर्मा आदि कुछ नये साहित्यकार भी वहां थे। किंतु उस शोकाकुल वातावरण में प्रसादजी का व्यक्तित्व विशिष्ट प्रतीत होता था। मुख पर गहरी उदामी और आँखों में विचित्र चमक लिए हुए वे शवयात्रा की तैयारी करवा रहे थे और लोगों को यथोचित निर्देशन दे रहे थे। शिवरानी देवीजी के हृदय को हिला देने वाले क्रन्दन के बीच प्रेमचंदजी का शव कफन में लपेटा जा रहा था। विश्व-साहित्य की अम 'कथा 'कफन' का लेखक 'कफन' की सीमा में बांधा जा रहा था। प्रसादजी बहुत निकट खड़े हुए सब देख रहे थे। कभी-कभी बीच में धीरे-धीरे कुछ निर्देश भी देते थे। जन्म और मृत्यु के रहस्यों का ज्ञाता, संघर्ष-संकुल जीवन की असत्य सम-विषम जीवन परिस्थितियों का व्याख्याता महाकवि गीली आँखों से अपने महान मित्र की अन्तिम विदा का यह आयोजन देख रहा था। एकाएक स्वजनों के विलाप का स्वर कानों और नेत्रों के संस्मरण पर्व : २०५