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के प्रधानमंत्री चेम्बरलेन का चित्र है। वे छाता लिये हुए हिटलर से मिलने जा रहे हैं, शांति के दूत बनकर । दूसरी ओर इसी पृष्ठ पर विन्सटन चर्चिल का भाषण है। उसने अपने देश की पालियामेण्ट में बड़े जोरदार शब्दों में चेम्बरलेन के शांति प्रयास का विरोध किया है।' चचिल के भाषण के कुछ वाक्य पढ़कर उन्होंने सुनाये। जहाँ तक मुझे स्मरण है, चचिल ने कहा था, 'चेम्बरलेन जो कुछ कर रहे हैं उसका परिणाम उल्टा होगा। देश भयावह संकट में फंस जायेगा।' चचिल के भाषण की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा, चचिल को भविष्यवाणी सत्य होगी और संकटकाल में चचिल ही ब्रिटिश साम्राज्य का उद्धारक बनेगा। दूसरा विश्वयुद्ध आरंभ हुआ। रह-रहकर मैं प्रसादजी की भविष्यवाणी का स्मरण करता था। चेम्बरलेन को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा और चचिल उस संहारक युद्धकाल में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने थे। युद्ध के महार्वण में डूबते हुए अपने राष्ट्र को उन्होंने ही अवलम्ब दिया था। __ सोचता हूँ, प्रसादजी के नाटकों मे राष्ट्र की रक्षा और राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के इतने सूत्र सन्निहित हैं। कुभा से जावा तक प्रसरित अपने राष्ट्र का कितना गौरवशाली मानचित्र उन्होंने अपने नाटकों में निर्मित किया है, प्रसाद की वह कल्याणी आर्षवाणी राष्ट्रनेताओं ने नहीं सुनी। वह मानचित्र खंडित हो चुका है, देश का अंग-भंग हो गया है। दिसम्बर १९३६ ई० का प्रथम सप्ताह-मैं प्रसादजी का दर्शन करने उनके निवास पर गया। प्रणाम करके जैसे ही मैं बैठा, प्रसादजी बताने लगे- सरकार ने लखनऊ में एक बड़ी प्रदर्शनी लगाने का निश्चय किया है, साथ ही हिन्दुस्तानी एकेडमी के तत्वावधान में हिन्दी-उर्दू की समस्या पर विचार गोष्ठी भी होनी है। उर्दू के पक्षधर मौलाना सुलेमान मदनी, मौलाना अबुलहक जैसे उड़े-बड़े विद्वान और लियाकत अली और नवाब हजारी जैसे लोग उसमें भाग लेगे ! हिन्दी के पक्षधरों में से आचार्य शुक्ल जी, मिश्रबन्धु, पं० पद्मसिंह शर्मा आदि आमंत्रित हैं। मुझे भी निमंत्रण आया है। वैसे तो मैं नहीं जाता, किन्तु (पुत्र रत्नशंकर की ओर संकेत करते हुए.) इनकी प्रदर्शनी देखने की बड़ी इच्छा है । इसलिए मुझे चलना पड़ेगा। लखनऊ में आवास की व्यवस्था को लेकर मैंने प्रसादजी को अपने खानदान के ही एक चाचा, कुंवर राजेन्द्र सिंह के बारे में बताया। वे एक समय उत्तरप्रदेश की अंग्रेज सरकार में कृषिमंत्री थे और साइमन कमीशन के लखनऊ आने पर उन्होंने उसके विरोध में, राय राजेश्वरबली के साथ मन्त्रिपद से इस्तीफा दे दिया था। चाचाजी उस समय के हिन्दी के अच्छे लेखकों में से थे। विशेषतया 'सरस्वती' और 'माधुरी' में विविध विषयों पर उनके लेख बराबर प्रकाशित होते रहते थे। उनके राजभवन में संस्मरण पर्व : २०७