पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५१२

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विशिष्ट अतिथियों के लिए कई अच्छे भावासीय भवन खण्ड थे। उस समय के प्रसिद्ध अंग्रेजी दैनिक 'लीडर' के सम्पादक सी० वाई. चिन्तामणि जब भी लखनक आते थे, तो उन्हीं के पहां ठहरते थे। मैंने प्रसादजी से आग्रह किया कि आप लखनऊ चलकर वहीं पर निवास करें। प्रसादजी ने कहा-मैं कुंवर राजेन्द्र सिंह के लेख पढ़ता रहता हूँ, उनके राजनीतिक व्यक्तित्व से भी मैं परिचित हूँ। अतः ऐसे व्यक्ति का अतिथि होना मेरे लिए बहुत अच्छा रहेगा। किन्तु मेरे साथ मेरे कुछ कर्मचारी भी जायेंगे, जो मेरे भोजनादि की व्यवस्था करेंगे। उनका अतिथि होकर भी मैं अपनी अलग व्यवस्था करूं-यह उनको बुरा तो नहीं लगेगा। मैंने कहा कि इस सम्बन्ध मे चाचाजी से बात करके ही कुछ कह सकता हूं। उन दिनों एम० ए० पूर्वार्द्ध की वार्षिक परीक्षा नहीं होती थी। दो वर्ष की पढ़ाई के अन्त में आठ प्रश्न-पत्र एक साथ होते थे। इस वजह से प्रथम वर्ष में हम सब पढ़ाई के प्रति उतने सजग नहीं थे, जितना होना चाहिए था। तब तक प्रसाद जी ने लखनऊ जाने की तिथि निश्चित नही की थी। मैं उन्हे बताकर पहले ही लखनऊ के लिए चल पड़ा। पहले इलाहाबाद गया। वहाँ निराला जी भी लखनऊ जाने को तैयार थे। हम दोनों ने रात्रि की गाड़ी से लखनऊ के लिए प्रस्थान किया। लखनऊ पहुंच कर मैं कुवर राजेन्द्र सिंह जी से मिला और उन्हें प्रसादजी के आगमन के विषय में बताया। वे बड़े प्रसन्न हुए । बोले-जिस फ्लैट में सी० वाई. चिन्तामणि जी ठहरते हैं, उसी में प्रसादजी के आवास की व्यवस्था की जायगी। मैं प्रसन्न मन लोटा और निराला जी को इसकी सूचना दे दी। ____ अभी तक प्रसादजी की ओर से उनके लखनऊ आगमन की कोई निश्चित सूचना मुझे नहीं मिल पायी थी। विक्टोरिया पार्क के बहुत बड़े क्षेत्र मे उक्त प्रदर्शनी लगी थी, जिसमें गीता प्रेस गोरखपुर का भी प्रतिष्ठान सजा हुआ था और आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी जी उसके इंचार्ज होकर प्रदर्शनी मे आये थे। मैंने वाजपेयी जी को प्रसादजी से हुई वार्ता के संबंध में बतलाया, तो उन्होंने कहा, रत्न शंकर के कारण वे आवें तो आवें, वैसे काशी से कही बाहर जाने के विषय में प्रसादजी बहुत आगा-पीछा करते रहते हैं। हम सब लोग प्रसादजी के आगमन की तिथि की सूचना पाने के लिए उत्कंठित थे। हिन्दुस्तानी एकेडमी की बैठक मे आने वाले हिन्दी के विद्वानों के आवास आदि की व्यवस्था का दायित्व मिश्र बंधुओं मे ज्येष्ठ पं० श्यामबिहारी मिश्र को सौंपा गया था। जिस दिन सायंकाल, प्रसादजी गाड़ी से लखनऊ पहुंचे, मिश्र बंधु-दोनों भाई-स्टेशन पर उनके स्वागतार्थ उपस्थित थे। प्रसादजी के एक पुराने मित्र त्रिभुवन नाथ सिंह 'सरोज' भी मिश्र-बंधुओं से सूचना पाकर प्रसादजी के स्वागतार्थ स्टेशन पर उपस्थित थे। प्रमादजी आये। मिश्र-बंधुओं के बहुत अनुनय विनय के २०८ : प्रसाद वाश्मय