पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५२६

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'हालएण्डरसन' नाम की एक सीविंग कम्पनी है। पोड़ी महंगी तो पड़ती है, पर सिलाई अच्छी होती है"। अपनी बात समाप्त करते ही स्वभावत: मेरे मुंह से भी निकल पड़ा--'भइया, आपका यह चेस्टर किसने सिला है ?' उन्होंने बड़ी गम्भीर मुद्रा में कहा-'तुम नहीं जानते ? यहां एक बड़ी प्रसिद्ध सीविंग कम्पनी है, मैं तो अपने कपड़े वही सिलवाता हूँ उसका नाम है भकुण्डरसन । भकुण्डरसन नाम सुनते ही मैं हँस पड़ा और फिर वे भी हंसने लगे। बड़ी देर तक हम दोनों इसे याद कर हंसते रहे। नरा' की चिकित्सा नरोत्तमदासजी, मेरे अग्रज, एक बार मस्तिष्क विकार से पीड़ित हो गये । प्रसादजी को जब यह संवाद मिला तो उन्होंने मेरे ज्येष्ठ भ्राता पुरुषोत्तमदासजी को पत्र लिखा कि नरोत्तमदासजी को काशी पहुंचा दिया जाय ताकि उनकी देखभाल में चिकित्सा हो। प्रसादजी नरोत्तमदामजी को 'नरा' कहकर पुकारते थे । पुरुषोत्तमदासजी प्रसादजी को खण्डा या खण्डेराव कहा करते थे। प्रसादजी को उत्तर भेजा गया कि नरोत्तमदासजी को काशी भेजा तो जा सकता है लेकिन चार जवान आदमी भी उन पर नियंत्रण नहीं कर पाते, प्रमादजी ने प्रत्युत्तर दिया-किसी भी स्थिति की चिन्ता न कर 'नरा' को काशी पहुंचा दीजिये। नरोत्तमदामजी को काशी लाया गया। कलकत्ते से साथ में आये हुए व्यक्तियो को वापस कर दिया गया और नरोत्तमदासजी अकेले प्रसादजी के सानिध्य में रह गये। नरोत्तमदासजी के केश काफी बढ़ गये थे तथा दाढ़ी-मूंछ ने उनका रूप विकराल कर दिया था। प्रसादजी ने टोंका-'नरा ! यह क्या रूप बना रखा है, तुमने ? तुम तो शौकीन तबियत के आदमी हो।' बस नरोत्तमदासजी मोर-कर्म कराने को महज ही राजी हो गये। एक नाई को बुलाया गया। प्रसाद मंदिर से सटा छोटा-सा चबूतरा है उसी पर नरोत्तमदासजी को बैठा दिया गया। नाई जिस समय छूरे पर धार दे रहा था तो नरोत्तमदासजी ने उस पर इतना कड़ा प्रहार किया कि वह बेहोश होकर गिर पड़ा। प्रसाद जी दौड़कर बाहर आये । नरोत्तमदासजी बेहोश नाई पर पुनः प्रहार करने ही वाले थे कि प्रसादजी ने उनका हाथ पकड़ लिया और अब दोनों में मल्लयुद्ध प्रारम्भ हो गया। प्रसादजी उनसे अधिक बलशाली थे, अतएव उन्होंने नरोत्तमदासजी को पटक दिया और बलिष्ट जाघों से उनकी पीठ दबाकर पिटाई शुरू कर दी। नरोत्तमदासजी परास्त हो गये और मुक्ति याचना की। प्रसादजी ने शर्त पेश की 'तुम मेरी सभी बात मानो तो?' नरोत्तमदासजी ने अपनी स्वीकृति दी। प्रसादजी ने उन्हें मुक्त कर दिया और प्रश्न किया-'तुमने नाई पर क्यों प्रहार किया ?' नरोत्तमदासजी ने उत्तर दिया-'भइया, वह मुझे छुरा दिखा रहा था।' प्रसादजी ने कहा २२२: प्रसाद वाङ्मय