पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५४

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भेंट हुई थी, इसलिए भ्रम से वे लोग Sandrokottus और Xandramus को एक समझ कर नन्द की कथा को चन्द्रगुप्त के पीछे जोड़ने लगे।। चन्द्रगुप्त ने पिप्पली-कानन के कोने से निकल कर पाटलिपुत्र पर अधिकार किया। मेगस्थिनीज ने इस नगर का वर्णन किया है और फारस की राजधानी से बढ़कर बतलाया है । अस्तु, मौर्यो की दूसरी राजधानी पाटलिपुत्र हुई। पुराणों को देखने से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त के बाद नौ राजा उसके वंश में मगध के सिंहासन पर बैठे। उनमें अन्तिम राजा बृहद्रथ हुआ, जिसे मारकर पुष्यमित्र -जो शुंग-वंश का था --मगध के सिंहासन पर बैठा; किन्तु चीनी यात्री हन्त्सांग, जो हर्षवर्धन के समय में आया था, लिखता है-"मगध का अन्तिम अशोकवंशी पूर्णवर्मा हुआ, जिसके ममय मे शशांकगुप्त ने बोधिद्रुम को विनष्ट किया था। और उसी पूर्णवर्मा ने बहुत से गो के दुग्ध से उस उन्मूलित बोधिद्रुम को सीचा, जिससे वह शीघ्र ही फिर बढ़ गया ।" यह बात प्रायः सब मानते हैं कि मौर्य-वंश के नौ राजाओं ने मगध के राज्यासन पर बैठकर उसके अधीन समस्त भू-भाग पर शासन किया। जब मगध के सिंहासन पर से मौर्यवंशीयों का अधिकार जाता रहा तब उन लोगों ने एक प्रादेशिक राजधानी को अपनी राजधानी बनाया। प्रबल प्रतापी चन्द्रगुप्त का राज्य चार प्रादेशिक शासको से शासित होता था। अवन्ति, स्वर्णगिरि, तोषालि और तक्षशिला में अशोक के चार सूबेदार रहा करते थे। इनमें अवन्ति के सूबेदार प्राय. राजवंश के होते थे। स्वयं अशोक उज्जैन का सूबेदार रह चुका था। सम्भव है कि मगध का शामन डांवाडोल देखकर मगध के आठवें मौर्य नृपति सोमशर्मा के किसी भी राजकुमार ने, जो कि अवन्ति का प्रादेशिक शासक रहा हो,, अवन्ति को प्रधान राजनगर बना लिया हो, क्योंकि उसकी एक ही पीढ़ी के बाद मगध के सिंहासन पर शुंगवंशीयों का अधिकार हो गया। यह घटना सम्भवत. १७५ ई० पू० में हुई होगी, क्योंकि १८३ में सोमशर्मा मगध का राजा हुआ। भट्टियों के ग्रन्थों में लिखा है कि मौर्य-कुल के मूलवंश से उत्पन्न हुये परमार नृपतिगण ही उम समय भारत के चक्रवर्ती राजा थे; और वे लोग कभी-कभी उज्जयिनी में ही अपनी राजधानी स्थापित करते थे। टॉड ने अपने राजस्थान में लिखा है कि जिस चन्द्रगुप्त की महान प्रतिष्ठा का वर्णन भारत के इतिहाम में स्वर्णाक्षरों से लिखा है, उस चन्द्रगुप्त का जन्म पंवारकुल की मौर्य शाखा में हुआ है। सम्भव है कि विक्रम के सौ या कुछ वर्ष पहले जब मौर्यों की राजधानी पाटलिपुत्र से हटी, तब इन लोगों ने उज्जयिनी को प्रधानता दी और यही पर अपने एक प्रादेशिक शासक की जगह राजा की तरह रहने लगे। राजस्थान में पंवार-कुल के मौर्य-नृपतिगण ने इतिहास में प्रसिद्ध बड़े-बड़े कार्य ५४ : प्रसाद वाङ्मय