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क्यों गया ? लखनऊ इसलिए गया कि हिन्दुस्तानी एकेडेमी की मीटिंग में हिन्दी की जोर अजमाइश होनी थी, लियाकत अली और नवाब छतारी जैसे दिग्गजों को अंग्रेजों ने पुट्ठा ठोंक कर अखाड़े में उतारा था और दुर्भाग्यवश लाटसाहब ने मुझे nominate कर दिया। हिन्दुस्तानी और भाषा का प्रश्न और इस पर अंग्रेजों की चौसर बहुत पुरानी बिछी है इमी में भारतेन्दु और राजा शिवप्रसाद मुहरे बने थे। हिन्दी का वर्चस्व बढ़ता ही गया फिर आधुनिक युग में काका कालेलकर और वर्धा की बुनियादी तालीम का ताना बाना इण्डिया आफिस से बुना जाने लगा बेचारे जवाहरलाल बनारस आए हम लोगों से बातें हुई वे शुद्ध हिन्दी के विरुद्ध बहस लेकर आए थे-हम लोग विरोध करने को विवश थे बाबू सम्पूर्णानन्द ने स्पष्ट कह दिया जवाहरलाल यहाँ के साहित्यकारों को अपने डण्डे से हांकने की चेष्टा मत करो ये अपनी चाल चलेगे। वे नाराज होकर चले गए। उन्होंने भी कुछ सुर भरे होंगे एकेडेमी के महरो को भी ताल दिए होगे। मैंने उन्हे रोका आप विश्राम करे-बोले ही डा० चोधरी न ातम रखवा दी तुम लोग मह पर ताला लगा दो-अब कुछ दिन जो बोलना है वह न रुकेगा। पिछले दिनों सम्मेलन द्वारा पारितोषक की सूचना के वहाने टण्डनजी आए थे और लगे हाथ चिकित्मा की चर्चा में शामकीय सहायता का भी मंकेत जैसे ही करने लगे मैने कमला नेहरू का उदाहरण दिया और तुरंत प्रश्न किया-जिसमें यह विषय ममाप्त हो -कि अब तो आप लोग शामन कर रहे है बताइए उनके लिए क्या करेंगे जो हंसते हँसते फांसी चढ गए। इसके बाद उनका रोष भरा मुख देख कर मै हट गया, जितनी देर रहूंगा वे बोलते ही जायेगे- यह सोच कर। ___ मुझे उन लोगों के अनिभिज्ञतावश वैमे विचित्र कथनों पर क्षोभ होता है जो प्रमादजी की परम्परा, उनके व्यवमाय और समस्त ऋण चुकाने पर भी पुष्ट आर्थिक स्थिति को न जानते हुए बड़े आराम से कह देते है कि आर्थिक कारणों से वे कहीं न गए न होमियोपैथी के अतिरिक्त कोई इलाज किया। उनका पारंपरिक व्यवसाय जर्दै सुर्ती का एक Manufacturing Business है जो सदैव पिता से पुत्र को सिखाया जाता था। जब भैया रुग्ण हुए तब चि० रत्नशंकर थियोसोफिकल स्कूल की नवीं कक्षा मे रहे और Day Boarder के रूप में प्रातः से सायं तक घर से दूर वहीं रहते थे। जब टी० बी० घोषित हुआ उसी दिन उनके स्कूल के अभिभावक पं० छेदी मिश्र से उन्होंने कहा मिश्रजी कल बच्चा का T C. ला दीजिए । जब मिश्रजी ने पूछा क्यों तब उन्होने Sputum report उन्हें दिखाई जिसमे Ful of Tuber cules लिखा था। मिश्रजी ने कहा कि शिक्षा चलन दीजिये तब उन्होंने कहा और manufacturing की शिक्षा फिर कैसे होगी ? यद्यपि, मेरी इच्छा थी कि मैट्रिकुलेशन के बाद ये कैम्ब्रिज का रास्ता पकड़ लेते किन्तु प्रभु की नहीं इच्छा। अब जितने २५२: प्रसाद वाङ्मय