पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५५७

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दिन हाथ में है उतने में ये 'सुंधनी साहु का काम संभाल लें नही तो इसका क्या होगा? क्या दो सौ वर्षों की परम्परा नष्ट करूं ? अब मिश्रजी अवाक् थे । ऐसी दशा में वे कही बाहर कैसे जाते ? अन्यथा पैमों का प्रश्न नही था वे चाहते तो स्विट्जर लण्ड में चिकित्सा तो छोटी चीज है वे वही बस सकते थे-किन्तु फिर वही बात अपने लिए उस 'सुंघनी साहु' को समाप्त हो जाने देते जिस कुल ने उन्हे पैदा किया ! उसके प्रति क्या उनका दायित्व है -यह में जानते थे। वाते तो अनेक है किन्तु लोगो के अनर्गल प्रलाप के उत्तर में यही यथेष्ट है। ____ आज यह समझ मे आता है कि वे मारनाथ, इटकी या जादवपुर सिनेटोरियम तक भी वे क्यो नही गए। विचित्र असमर्थता एक बार जब श्री शिवप्रसाद गुप्त रोगग्रस्त हुए तो फिर उनका चलना फिरना बन्द हो गया। उन्हे कुर्सी पर बैठाकर ही कार के पास नाया जाता और कुर्सी कार मे रहती। कार से फिर कुर्सी पर बैठाकर ही उन्हे यथास्थान पहुंचाया जाता। जब प्रसादजी की अस्वस्थता बढी और उसने कठिन रूप धारण कर लिया तो बाबू शिवप्रसाद गुप्त उनमे मिलने आये। लेकिन अ 'स्था ऐरी थी हि प्रमादजी ऊपरी मंजिल मे नीचे आने में असमर्थ थे और उधर गुप्तजी सीडी चटने में असमर्थ थे । नीचे आंगन मे बैठकर उन्होने ऊपर प्रसाद जी का देखा और शोर विहल होकर बोले 'जयशकर | यह क्या विधि-गिदम्बना है कि न रे ऊपर जा गकता हूँ, न तुम नीचे आ राक्ते हो। सिनेटोरियम-प्रबन्ध एक बार प्रमादजी ने मुसे निखा-'में कुछ दिन यादवपर सिनेटोरियम मे रहना चाहता हूँ-वहा से मब पता लगाकर मु, लिसो'। यह 'टना प्रसादजी के जीवन के अन्तिम काल की है। में यादवपुर गया, पर वहां पता लगा कि कोई सीट खाली नहीं है। मैं निराश नहीं हुआ, म कलकत्ते के एक सुप्रसिद्ध डाक्टर विधान बाबू के द्वारा पुनः प्रयत्न क्यिा। जब मै दूसरी बार यादवपुर पहुंचा तो वहाँ के अधिकारियो ने वहा-'आपके लिए स्थान की व्यवस्था हर ती गई है, आप आ सकते है। उन्होने मेरे लिए एक पुस्तकालय खाली करा दिया था और उमी में सीट की व्यवस्था हो गई। मेने सारा प्रबन्ध वर तेने के प्रसादजी को आने के लिए लिया। उन्होंने भी मेरा पत्र ा र यात्रा की पूरी तैयारी कर ली। एक निश्चित, तिथि पर मामान आदि बाहर लाकर गाडी मे रख दिया गया। वे भी स्टेशन आने के लिए गादो मे बैठ गये। लेकि उनके एक निकट के सेवक ने न जाने क्या धीरे गे कहा और प्रसारजी एकाएक गाडी से उतर पडे । उन्होने अपनी यात्रा स्थगित कर दी। म यहाँ प्रतीक्षा में था। कई दिन प्रतीक्षा संस्मरण पर्व : २५३