पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/५६

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है । उससे मालूम होता है कि आठवी शताब्दी के अन्त तक राजपूताना और मालवा पर मौर्य-नपतियों का अधिकार रहा। प्रसिद्ध मालवेश भोज भी परमार वंश का था जो १०३५ में हुआ। इस प्रकार परमार और मौर्य-कुल पिछले काल के विवरणों से एक में मिलाये जाते है। इस बात की शंका हो सकती है कि मौर्य कुल की मूल शाखा परमार का नाम प्राचीन बौद्धों की पुस्तकों में क्यों नहीं मिलता। परन्तु यह देखा जाता है कि जब एक विशाल जाति से एक छोटा-सा कुल अलग होकर अपनी स्वतन्त्र सत्ता बना लेता है, तब प्रायः वह अपनी प्राचीन संज्ञा को छोड़कर नवीन नाम को अधिक प्रधानता देता है। जैसे इक्ष्वाकुवंशी होने पर भी बुद्ध, शाक्य नाम से पुकारे गए और, जब शिलालेखों में मानमौर्य और परमार भोज के हम एक ही वंश में होने का प्रमाण पाते हैं तब कोई संदेह नही रह जाता। हो सकता है, मौर्यो के बौद्धयुग के बाद जब इस शाखा का हिन्दू धर्म की ओर अधिक झुकाव हुआ तो परमार नाम फिर से लिया जाने लगा हो, क्योंकि मौर्य लोग बौद्ध-प्रेम के कारण अधिक कुख्यात हो चुके थे। बौद्ध-विद्वेष के कारण अशोक के वंश को अक्षत्रिय तथा नीच कुल का प्रमाणित करने के लिए मध्यकाल मे अधिक उत्सुकता देखी जाती है, किन्तु यह अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि प्रसिद्ध परमार-कुल और मौर्य-वंश परस्पर सम्बद्ध है। इस प्रकार अज्ञात पिप्पली-कानन के एक कोने से निकलकर विक्रम संवत् के २६४ वर्ष पहले से ७८४ वर्ष बाद तक मौर्य लोगों ने पाटिलपुत्र, उज्जैन, घारा, महेश्वर, चित्तौर (चित्रकूट) और अर्बुदगिरि आदि में अलग-अलग अपनी राजधानियां स्थापित की और लगभग १०५० वर्ष तक वे लोग मौर्य-नरपति कहकर पुकारे गये। पिप्पिली-कानन के मौर्य : ____ मौर्य-कुल का सवमे प्राचीन स्थान पिप्पिली-कानन था। चन्द्रगुप्त के आदि-पुरुष मौर्य इसी स्थान के अधिपति थे और यह राजवंश गौतम बुद्ध के समय में प्रतिष्ठित गिना जाता था, क्योंकि बौद्धों ने महात्मा बुद्ध के शरीर-भस्म का एक भाग पाने वालों में पिप्पिली-कानन के मौर्यों का उल्लेख किया है । पिप्पिली-कानन बस्ती जिले मैं नेपाल की सीमा पर है। यहाँ ढूह और स्तूप है, इसे अब पिपरहियाकोट कहते है। फाहियान ने स्तूप आदि देखकर भ्रमवंश इसी को पहले कपिलवस्तु समझा था। मि० पीपी ने इसी स्थान को पहले खुदवाया और बुद्धदेव की धातु तथा और जो वस्तुएं मिली, उन्हें गवर्नमेट को अर्पित किया था तथा धातु का प्रधान अंश सरकार ने स्याम के गजा को दिया। ____ इसी पिप्पिली-कानन में मौर्य लोग अपना छोटा-सा राज्य स्वतन्त्रता से संचालित करते थे, और, ये क्षत्रिय थे, जैसा कि महावंश के इस अवतरण से सिद्धि ५६ : प्रसाद वाङ्मय