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. . उन्होने एक क्षण के लिये अपने नेत्र बन्द किये । फिर बोले श्रद्धासूक्त में-'श्रद्धा' काम गोत्र की बालिका कही गयी है। तब, 'कामायनी' नाम कैसा होगा? मन्दिर मे स्थापित देवविग्रह की ओर इशारा करते हुए मैने कहा-'इस पर उनकी स्वीकृति चाहिए' । स्वयं अपने हाथ के कागज की उस चिट पर 'कामायनी' लिखकर उन्होने देवाधिदेव की मंजूरी के लिए मेरी ओर बढ़ा दिया। उसके बाद की कथा कहने-लिखने में यह लेखनी असमर्थ है। यही जान लें कि उनकी अनेक जन्मो में चली आई साधना की सिद्धि-कामायनी है । इति शिवम् २६० . प्रमाद वाङ्मय