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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/६२

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ब्राह्मण ने हंसकर कहा--"राजन्, ये जिसकी गायें है, वह मारने लगे तो?" बालक ने सगर्व छाती फुलाकर कहा-"किसका साहस है जो मेरे शासन,को न माने ? जब मैं राजा हूँ, तब मेरी आशा अवश्य मानी जायगी।" ब्राह्मण ने आश्चर्य पूर्वक बालक से पूछा-"राजन्, आपका शुभ नाम क्या है ?" तब तक बालक की मां वहाँ आ गयी और ब्राह्मण से हाथ जोड़कर बोली"महाराज, यह बड़ा धृष्ट लड़का है, इसके किसी अपराध पर ध्यान न दीजियेगा।" चाणक्य ने कहा-"कोई चिन्ता नहीं, यह बड़ा होनहार बालक है। इसकी मानसिक उन्नति के लिए तुम इसे किसी प्रकार राजकुल में भेजा करो।" उसकी मां रोने लगी । बोली -'हम लोगों पर राजकोप है, और हमारे पति राजा की आज्ञा से बन्दी किये गये हैं।" ब्राह्मण ने कहा-"बालक का कुछ अनिष्ट न होगा, तुम इसे अवश्य राजकुल ले जाओ!" ___ इतना कह, वालक को आशीर्वाद देकर चाणक्य चले गये। बालक की मां बहुत डरते-डरते एक दिन, अपने चञ्चल और साहसी लड़के को लेकर राजसभा में पहुंची। नन्द एक निष्ठुर, मूर्ख और त्रासजनक राजा था । उसकी राजसभा बड़े-बड़े चापलूस मुखों से भरी रहती थी। पहले के राजा लोग एक दूसरे के बल, बुद्धि और वैभव की परीक्षा लिया करते थे और इसके लिए वे तरह-तरह चे उपाय करते थे । जब बालक मां के साथ राजसभा में पहुंचा, उसी समय किसी राजा के यहां से नन्द की राजसभा की बुद्धि का अनुमान करने के लिए, लोहे के बन्द पिंजड़े मे मोम का सिंह बना कर भेजा गया था और उसके साथ यह कहलाया गया था कि पिंजड़े को खोले बिना ही सिंह को निकाल लीजिये। सारी राजसभा इस पर विचार करने लगी; पर उन चाटुकार मुर्ख-सभासदों को कोई उपाय न सूझा । अपनी माता के साथ वह बालक यह लीला देख रहा था । वह भला कब मानने वाला था ? उसने कहा--"मैं निकाल दंगा।" ____ सब लोग हंस पड़े । बालक की ढिठाई भी कम न थी। राजा को भी आश्चर्य हुआ। नन्द ने कहा-"यह कौन है ?" मालूम हुआ कि राजबन्दी मौर्य-सेनापति का यह लड़का है । फिर क्या, नन्द की मूर्खता की अग्नि में एक और आहुति पड़ी। क्रोधित होकर वह बोला-"यदि तू इसे न निकाल सका, तो तू भी इस पिंजड़े में बन्द कर दिया जायगा।" उमकी माता ने देखा कि यह भी कहां से विपत्ति आयी; परन्तु बालक ६२ : प्रसाद वाङ्मय