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पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/७१

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सिल्यूकस सिन्धु के उस तौर पर आ गया, मौर्य-सम्राट् इस आक्रमण से अनभिज्ञ न था। उसके प्रादेशिक शासक, जो कि उत्तर-पश्चिम प्रान्त के थे, बराबर सिल्यकस का गतिरोध करने के लिये प्रस्तुत रहते थे; पर अनेक उद्योग करने पर भी कपिशा आदि दुर्ग सिल्यूकस के हस्तगत हो ही गये। चन्द्रगुप्त, जो कि सतलज के समीप से उसी ओर बराबर बढ़ रहा था, सिल्यूकस की क्षुद्र विजयों से घबड़ा कर बहुत शीघ्रता से तक्षशिला की ओर चल पड़ा। चन्द्रगुप्त के बहुत थोड़े समय पहले ही सिल्यूकस सिन्धु के इस पार उतर आया और तक्षशिला के दुर्ग पर चढ़ाई करने के उद्योग में था। तक्षशिला की सूबेदारी बहुत बड़ी थी। उस पर विजय कर लेना सहज कार्य न था। सिल्यूकस अपनी रक्षा के लिए मिट्टी की खाई बनवाने लगा। ____ चन्द्रगुप्त अपनी विजययिनी सेना लेकर तक्षशिला में पहुंचा और मौर्य-पताका तक्षशिला-दुर्ग पर फहराकर महाराज चन्द्रगुप्त के आगमन की सूचना देने लगा। मौर्य-सेना ने आक्रमण करके ग्रीकों की मिट्टी की परिखा और उनका ब्यूह नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। मौर्यो का भयानक आक्रमण उन लोगों ने बड़ी वीरता से सहन किया, ग्रीकों का कृतिम दुर्ग उनकी रक्षा कर रहा था; पर कब तक? चारों ओर से असंख्य मौर्य-सेना उस दुर्ग को घेरे थी। आपातत: उन्हें कृत्रिम दुर्ग छोड़ना पड़ा। इस बार भयानक लड़ाई आरम्भ हुई। मौर्य सेना का चन्द्रगुप्त स्वयं नायक था। असीम उत्साह से मौर्यो ने आक्रमण करके ग्रीक-सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया। लौटने की राह में बड़ी बाधा-स्वरूप मिन्धु नदी थी, इसलिये अपनी टूटी हुई सेना को एक जगह उन्हें एकत्र करना पड़ा । चन्द्रगुप्त की विजय हुई । इसी समय ग्रीक जनरलों में फिर खलबली मची हुई थी। इस कारण सिल्यूकस शीघ्र ही सन्धि कर लेने पर बाध्य हा । इस सन्धि में ग्रीक लोगों को चन्द्रगुप्त और चाणक्य से सब ओर दबना पड़ा। इस सन्धि के समय में कुछ मतभेद है। किसी का मत है कि यह सन्धि ३०५ ई० पू० में हुई और कुछ लोग कहते हैं ३०३ ई० पू० में। मिल्यूकस ने जो ग्रीकसन्धि की थी, वह ३११ ई० पू० में हुई। उसके बाद ही वह युद्ध यात्रा के लिए चल पड़ा। अस्तु आरकोशिया, जेड्रोशिया और बैक्ट्रिया आदि विजय करते हुए भारत तक आने में पांच वर्ष से विशेष समय नहीं लग सकता और इसी से उस युद्ध का समय, जो कि चन्द्रगुप्त से उसका हुआ था, ३०६ ई० पू० माना गया। तब ३०५ ई० पू० में सन्धि का होना ठीक-सा जंचता है। सन्धि में चन्द्रगुप्त भारतीय प्रदेशों के स्वामी हुये । अफगानिस्तान और मकराना भी चन्द्रगुप्त को मिला और उसके १. हिरात, कंधार, काबुल, मकराना भारत में प्रदेशों के साथ सिल्यूकस ने चन्द्रगुप्त को दिया। -- V. A. Smith : E. H. of India. मौर्यवंश चन्द्रगुप्त : ७१