पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/७५

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द्वितीय विभाग विदेशियों के व्यवहार पर ध्यान रखता था। पीड़ित विदेशियों की सेवा करता था, उनके जाने के लिये वाहन आदि का आयोजन करना, उनके मरने पर उनकी सम्पत्ति की व्यवस्था करना और उन्हें जो हानि पहुँचाये उसको कठोर दण्ड से दण्डित करना उसका कार्य था। इससे ज्ञात होता है कि व्यापार अथवा अन्य कार्यों के लिए बहुत-से विदेशी कुसुमपुर में आया करते थे। तृतीय विभाग प्रजा के मरण और जन्म की गणना करता था और उन पर कर निर्धारित करता था। ___चतुर्थ विभाग व्यापार का निरीक्षण करता था और तुला तथा नाप का प्रबन्ध करता था। पंचम विभाग राजकीय कोष का था, जहां द्रव्य बनाये जाते और रक्षित रहते थे। छठा विभाग राजकीय कर का था, जिपमे व्यापारियो ने लाभ गे दशमांश लिया जाता था और उन्हें खूब सावधानी से कार्य करना होता थ' । जो उम कर को न देता, वह कठोर दण्ड मे दण्डिन होता । राज्य में नारी लोग भूमि का नाप र · पर कर निर्धारण करते थे और जल की नहरों का समुचित प्रबन्ध करते थे, जिमनापों को मरवाता होती थी। रुद्रदामा के गिरनार वाले लेख से प्रतीत होता है ति गुदर्शन हद महाराज चन्द्रगुप्त के राजत्व-बाल मे बना था। इ"मे ज्ञान होता है कि राज्य मे सर्वत्र जल का प्रबन्ध रहता था तथा कृपको के लाभ पर विशेष ध्यान रहता था। राज्य के प्रत्येक प्रान्त मे ममाचार मंग्रह करने वाले थे, जो सत्य समाचार चन्द्रगुप्त को देते थे। चाणक्य-सा बुद्धिमान् मन्त्री चन्द्रगुप्त को बड़े भाग्य से मिला शतश' से ज्ञात होता है कि वह शोण और गगा के सगम पर था। पाटलिपुत्र कब वमा, इसका ठीक पता नही चलतः । कया-सरित्मागर के मत से इसे पुत्रक नामक ब्राह्मणकुमार और पाल नाम्नी राजकुमारी ने अपने नामों से बसाया था; पर इसके लिये जो कथा है, वह विश्वास के योग्य नही है बौद्ध लोग लिखते है कि राजा अजातशत्र के मन्त्री वर्षकार ने पाटलि ग्राम में एक दुर्ग बनवाया था, जिसे देखकर महात्माबुद्ध ने कहा था कि यह कुछ दिनों में एक प्रधान नगर हो जायगा। इधर वायुपुराण में लिखा है कि अजातशत्रु के पुत्र उदयाश्व ने वह नगर बसाया है । स वै पुस्वरं राजा पृथिव्या कुमुमाह्वयं । गङ्गाया दक्षिणे काणे चतुर्थेब्दे करिष्यति ॥ अजातशत्रु और बुद्ध समकालीन थे। वुद्ध का निर्वाण ५५० ई० पू० में मौर्यवंश-चन्द्रगुप्त : ७५