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का भविष्य कहते थे और यदि उनका भविष्य कहना सत्य म होता तो वे फिर उस सम्मान की दृष्टि से नहीं देखे जाते थे। ___ भारतवासियों का व्यवहार बहुत सरल था। यज्ञ को छोड़ कर वे मदिरा और कभी नहीं पीते थे। लोगों का व्यय इतना परिमित था कि वे सूद पर ऋण कभी नही लेते थे। भोजन वे लोग नियत समय में तथा अकेले ही करते थे। व्यवहार के वे लोग बहुत सच्चे होते थे; झूठ से उन लोगों को घृणा थी। पारीक मलमल के कामदार कपड़े पहनकर वे चलते थे। उन्हें मौन्दर्य का इतना ध्यान रहता था कि नौकर उन्हें छाता लगाकर चलता था । आपस मे मुकदमें बहुत कम होते थे। विवाह एक जोडी बैल देकर होता था और विशेष उत्सव में आडम्बर से कार्य करते थे। तात्पर्य यह है कि महाराज चक्रवर्ती चन्द्रगुप्त के शासन में प्रजा शान्तिपूर्वक निवास करती थी। और सब लोग आनन्द से अपना जीवन व्यतीत करते थे। शिल्प-वाणिज्य की अन्छी उन्नति थी। राजा और प्रजा मे विशेष सद्भाव था, राजा अपनी प्रजा के हित-साधन मे सदैव तत्पर रहता था। प्रजा भी अपनी भक्ति से राजा को सन्तुष्ट रखती थी। चक्रवर्ती चन्द्रगुप्त का शासनकाल भारत का स्वर्णयुग था। चाणक्य इनके बहुत-से नाम मिलते है। विष्णुगुप्त, कौटिल्य, चाणक्य, वात्स्यायन, द्रामिल इत्यादि इनके प्रसिद्ध नाम है। भारतीय पर्यटक इन्हे दक्षिणदेशीय कोंकणस्थ ब्राह्मण लिखते है और इनो प्रमाण में वे लिखते है कि दक्षिणदेशीय वाह्मण प्रायः कूटनीनिपट होते है । चाणक्य की कथाओं मे मिलता है कि वह श्यामवर्ण के पुरुष तथा कुरूप थे, क्योंकि इसी रण मे रह नन्द की सभा से श्राद्ध के समय उठाये गये । जैनियो के मत से चाणक्य गोल-ग्रामवासी थे और जैन धर्मावलम्बी थे । वह नन्द द्वारा अपमानित होने पर नन्दवं । का नाश करने की प्रतिज्ञा करके बाहर निकल पड़े ओर चन्द्रगुप्त मे मिलकर उमे कौशल से नन्द-राज्य का स्वामी बना दिया। वौद्ध लोग उन्हें तक्षशिना निवामी बाह्मण बतलाते है और कहते है कि धननन्द को मारकर चाणक्य ने नन्दगप्त को गज्य दिया । पुराणो में मिलता है, "कौटिल्यो नाम ब्राह्मणः समुद्धरिष्यति ।" जस्तु, मब की कथाओं का अनुमान करने से जाना जाता है कि चाणक्य ही चन्द्रगुप्त की उन्नति के मूल हैं। चाणक्य के बारे में जस्टिस तैलंग लिखते है : - "Chanakya is represented as a clearheaded, self confldant intriguing hard poiitician with ultimate end of his ambition - ७८: प्रसाद वाङ्मय