पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/८

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विशाख (परिचय) भारत के प्राचीन इतिहास की जैसी कमी है वह पाठकों से छिपी नही है। यद्यपि धर्म-ग्रन्थों में सूत्र-रूप से बहुत-सी गाथाएं मिलती है किन्तु वे क्रमबद्ध और घटना-परम्परा मे युक्त नहीं है। संस्कृत-साहित्य में इतिहास नाम से लब्ध-प्रतिष्ठ केवल राजतरंगिणी नामक ग्रन्थ ही उपलब्ध होता है। कल्हण पण्डित ने अपने पूर्व के कई इतिहासों का और उनके लेखकों का उल्लेख किया है पर वे अब नही मिलते। यह नाटक, राज-तरंगिणी की एक ऐतिहामिक घटना पर अवलम्बित है जिसका समय निर्धारण करना एक कठिन और इम नाटक से स्वतन्त्र विषय होगा। फिर भी उसका कुछ दिग्दर्शन करा देना इस परिचय का एक अंग होगा। राजतरंगिणी का क्रम-बद्ध इतिहास तृतीय-गोन से प्रारम्भ होता है जिसे कि कल्हण से पहले के विद्वानों ने लिखा है। इसके पहले के बावन राजाओ का नाम नहीं मिलता, क्योंकि युधिष्ठिर के समकालीन आदि गोनर्द से काश्मीर का इतिहास क्रमबद्ध करने के लिये इतने राजा जान-बूझ कर भुला दिये जाते हैं, अथवा वे कोई वास्तविक राजा थे ही नही, केवल समय को पूरा करने के लिए उनके अस्तित्व की कल्पना कर ली गयी है। कल्हण में पहले के विद्वानों ने इस विस्तृत समय को २२६८ वर्ष रक्खा है। कल्हण ने, कल्यब्द के ६५२ वर्ष बीतने पर भारत-युद्ध हुआ, ऐसा मानकर, उम समय को १२६६ वर्ष की संख्या मे घटा दिया है। और, आदिगोनदं से लेकर दूसरे गोनर्द तक और लव से लेकर शनीचर तक, फिर अशोक से लेकर अभिमन्यु तक कुल १७ राजाओं की सूची उन बावन विस्मृत राजाओं में से खोज निकाली गयी है, जिसे गम्भवत पद्ममिहिर, हेलाराज इत्यादि पण्डितों ने ताम्रशासन, विजयस्तम्भ, आज्ञापत्र तथा दानपत्र इत्यादि देखकर जैसे-तैसे ठीक किया था। इनका राज्यकाल जो कि इम ग्रन्थ मे निर्धारित है, कहां तक ठीक है इसकी समीक्षा करनी होगी। नवाविष्कृत ऐतिहासिक युग का प्रसिद्ध सम्राट अशोक मौर्य अब अनजाने हुए इतिहास का बनावटी राजा न रहा। इसका समय अच्छी तरह निर्धारित हो चुका है। राजतरङ्गिणी के मत से इसका राज्य-काल गन-कलि १७३४ से आरम्भ होकर ८: प्रसाद वाङ्मय