पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

चन्द्रगुप्त को भूख लगी तो चाणक्य ने एक ब्राह्मण के पेट से गुलगुले निकाल कर खिलाये। ऐसी अनेक आश्चर्यजनक कपोलकल्पनाओं के आधार पर चन्द्रगुप्त और चाणक्य को जैन बनाने का प्रयत्न किया जाता है । __इसलिये बौद्धों के विवरण की ओर ही ध्यान आकर्षित होता है। बौद्ध लोग कहते हैं कि 'चाणक्य तक्षशिला-निवासी थे, और इधर हम देखते है कि तक्षशिला' में उस समय विद्यालय था जहां कि पाणिनि, जीवक आदि पढ़ चुके थे। अस्तु, सम्भवतः चाणक्य, जैसा कि बौद्ध लोग कहते है, तक्षशिला में रहते या पढ़ते थे। जब हम चन्द्रगुप्त की सहायक सेना की ओर ध्यान देते हैं, तो यह प्रत्यक्ष ज्ञात होता है कि चाणक्य का तक्षशिला से अवश्य सम्बन्ध था क्योंकि चाणक्य अवश्य उनसे परिचित थे, नही तो वे लोग चन्द्रगुप्त को क्या जानते ! हमारा यही अनुमान है कि चाणक्य मगध के ब्राह्मण थे। क्योंकि मगध मे नन्द की सभा मे वे अपमानित हुए थे। उनकी जन्मभूमि पाटलिपुत्र ही थी। पाटलिपुत्र इस समय प्रधान नगरी थी, चाणक्य तक्षशिला मे विद्याध्ययन करके वहां से लौट आये। किसी कारणवश वह राजा पर कुपित हो गये, जिसके बारे मे प्रायः सब विवरण मिलते-जुलते हैं। वह ब्राह्मण भी प्रतिज्ञा कर उठा कि आज से, जब तक नन्दवंश का नाश न कर लॅगा, शिखा न बाँधंगा। और फिर चन्द्रगुप्त को मिलाकर जो-जो कार्य उन्होंने किये, वह पाठकों को ज्ञात ही है। जहाँ तक ज्ञात होता है, चाणक्य वेद धर्मावलम्बी, कूटनीतिज्ञ, प्रखर प्रतिभावान और हठी थे। उनकी नीति अनोखी होती थी और उनमे अलौकिक क्षमता थी। नीति शास्त्र के आचार्यों में उनकी गणना है। उनके बनाये नीचे लिखे हुए ग्रन्थ बतलाये जाते हैं-चाणक्य नीति, अर्थशास्त्र, कामसूत्र और न्यायभाष्य । यह अवश्य कहना होगा कि वह मनुष्य वड़ा प्रतिभाशाली था जिसके बुद्धिबल द्वारा, प्रशंसित राज-कार्य-क्रम से चन्द्रगुप्त ने भारत का साम्राज्य स्थापित करके उस पर राज्य किया। हेमचन्द्र के अभिधान में पक्षिल स्वामी और चाणक्य एक ही व्यक्ति का नाम है। १. कनिंघम साहब वर्तमान शाह-देहरी के समीप मे तक्षशिला का होना मानते हैं। रामचन्द्र के भाई भारत के दो पुत्रों के नाम से उसी ओर दो नगरियां बसायी गयी थी, तक्ष के नाम से तक्षशिला और पुष्कल के नाम से पुष्कलावती। तक्षशिला का विद्यालय उस समय भारत के प्रसिद्ध विद्यालयों में से एक था। ८.: प्रभाद गङ्गमय