पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/८१

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प्रदीपः सर्वविद्यानामुपाय: सर्वकर्मणाम् । . आश्रयः सर्वधमर्माणा विद्योद्देशेप्रकीर्तिता । (वात्स्यायन न्यायभाष्य) अर्थशास्त्र में यही श्लोक अविकल मिलता है। केवल उसका चतुर्थपाद बदला दिखाई देता है, जैसे- "विद्योद्देशे प्रकीर्तिता" की जगह "शश्वदान्वीक्षिकीमता" (अर्थशास्त्र ७ पृष्ठ), इसमे भी अनुमान होता है कि वात्स्यायन और चाणक्य एक ही थे। वाणक्य का ही नाम वात्स्यायन था,' चन्द्रगुप्त की राजसभा में उसका रहना प्रमाणित है। अर्थशास्त्र में स्वयं चाणक्य ने लिखा है . येन शास्त्रं च शस्त्रं च नन्दराजागता च भूः । अमर्षणोद्धृतान्याशु तेन शास्त्रमिदं कृतम् ॥ काशी सं० १९६६ -जयशंकर प्रसाद १. वात्स्यायनो मल्लिनागः कुटिलश्चणकात्मजः द्रामिलः पक्षिलस्वामी विष्णुगुप्तोऽगुलश्च सः--अभिधान चिन्तामणि । (सं०) मौर्यवंश-चन्द्रगुप्त : ८१