पृष्ठ:प्रसाद वाङ्मय रचनावली खंड 5.djvu/८५

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धर्मविवाहानाम्' के अनुसार धर्म-विवाहों में मोक्ष नहीं होता था। दमयन्ती के पुनर्लग्न की घोषणा भी पति के नष्ट या परदेश प्रस्थित होने पर ही की गई थी। __जायसवालजी अबुलहसन अली की यह बात नहीं मानते कि चन्द्रगुप्त ने रामगुप्त की हत्या की होगी। उनका कहना है कि चन्द्रगुप्त तो भरत की तरह बड़े भाई के लिए गद्दी छोड़ चुका था। उनका अनुमान है कि "Very likely, it came about in thc form of popular uprsing" ___अब नाटककार के 'अरतिकारिणी' और क्लीव' आदि शब्द घटना की परिणति की क्या सूचना देते हैं, यह विचारणीय है। बहुत मम्भव है कि अबुलहसन की कथा का आधार 'देवीचन्द्रगुप्त' नाटक ही हो। क्योंकि अबुलहसन के लिखने के पहले उक्त नाटक का होना माना जा सकता है। यह ठीक है कि हमारे आचार और धर्मशास्त्र की व्यावहारिकता की परम्परा विच्छिन्न-सी है। आगे जितने मुधार या समाजशास्त्र के परीक्षात्मक प्रयोग देखे या सुने जाते है, उन्हें अचिन्तित और नवीन समझ कर हम बहुत शीघ्र अभारतीय कह देते है, किन्तु मेरा ऐसा विश्वास है कि प्राचीन आर्यावर्त ने समाज की दीर्घकालव्यापिनी परम्परा म प्राय: प्रत्येक विधान का परीक्षात्मक प्रयोग किया है। तात्कालिक कल्पाणकारो परिवर्तन भी हुए है। इसीलिए डेढ़ हजार वर्ष पहले यह होना अस्वाभाविक नही था। क्या होना चाहिए और कैसा होगा, यह तो व्यवस्थापक विचार करें; किन्तु इतिहास के आधार पर जो कुछ हो चुका या जिस घटना के घटित होने की सम्भावना है, उसी को लेकर इस नाटक की कथा-वस्तु का विकास किया गया है। भण्डारकरजी का मत है कि यह युद्ध गोमतो की घाटी में अल्मोड़ा जिले के कार्तिकेयपुर के समीप हुआ। जायसवालजी का मत है कि यह गुद्ध ३७४ ई० से लेकर ३८० ई० के बीच में कांगड़ा जिले के अबिबाल स्थान में हुआ था, जहाँ कि प्रथम सिक्ख-युद्ध भी हुआ था। ___ प्रयाग की प्रशस्ति में समुद्रगुप्त की साम्राज्य नीति मे विजित राजाओं के आत्मनिवेदन 'कन्योपायन दान' ग्रहण करने का उल्लेख है। मैंने ध्रुवस्वामिनी के गुप्तकुल में आने का वही कारण माना है । विशाखदत्त ने ध्रुघदेवी नाम लिखा है; किन्तु मुझे ध्रुवस्वामिनी नाम जो राजशेखर के मुक्तक में आया है, स्त्रीजनोचित, सुन्दर, आदर-सूचक और सार्थक प्रतीत हुआ। इसीलिए मैंने उसी का व्यवहार किया है। गत पृष्ठ में उल्लिखित Divorce के साथ पाण्डुलिपि में Decree nicci भी लिखित है, जिसका अर्थ अगले आदेश के न पारित होने तक जीवन्त रहना है। (सं०) ध्रुवस्वामिनी-सूचना : ८५