पृष्ठ:प्राकृतिक विज्ञान की दूसरी पुस्तक.djvu/५७

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(४६ ) तुम उस काग को खोल कर लोटे में थोड़े से जस्ते के टुकड़े डाल दो और उसको काग से ढक दो । अब तुम उस प्याले में होकर पानी मिला हुआ गंधक का तेजाब डालो। इस तेजाब के पड़ते ही लोटे में उबाल सा आता हुआ दिखलाई देगा। बस समझ लो कि हाइड्रोजन बनना शुरू हो गया है । अब तुम इस गैस को एक दूसरे ट्यूब या शीशी में इस तरह इकट्ठा करो जैसे कि सामने शकल में दिखलाया है । इस गैस के ट्यूब के पास जलती हुई दियासलाई ले जाओ । जब तक शुद्ध गैस नहीं आयेगी तब तक उसमें दियासलाई लगते ही आवाज़ होगी । जब शुद्ध गैस आने लगेगी तो आवाज़ बन्द हो जावेगी और गैस जलने लगेगी। गैस के जलने पर ऑक्सिजन सहायता करती है और वह हाइड्रोजन जलने में हवा की औक्सिजन से मिल जाती है और शीशी या ट्यब के भीतर किनारों पर पानी की बूंदें दिखलाई देती हैं। एक और तरह से भी तुम यह देख सकते हो कि पानी किस तरह से बनता है । नीचे की शकल में दिखायी हुई रीति से तुम हाइड्रोजन बनाओ । लोटे से एक ट्यब ऊपर को सीधा गया है । इस ट्यूब के ऊपर तुम एक टीन की कीप जिससे मिट्टी का तेल लालटेन में भरते हैं, उल्टी Courtesy Dr. Ranjit Bhargava, Desc. Naval Kishore. Digitized by eGangotri