पृष्ठ:प्राकृतिक विज्ञान की दूसरी पुस्तक.djvu/७०

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(६२) इस तान के बीच में ऐसी ही एक तान के दो बराबर के छोटे २ टुकड़े ( इस प्रकार ) लम्बी तान में ऐसे बांधो कि ये पृथ्वी की धरातल के समानांतर रहें । इनके कोनों में तार या टीन के पू, प, उ, द, अक्षरों को लगा दो । एक गोल या चौकोर काग का टुकड़ा लो । उस में बीच में छेद कर दो। यह छेद इतना ढीला रहे कि काग लम्बी तान के ऊपर आसानी से घूम सके । इस काग में एक ऐसी तान पृथी के समानांतर लगा दो। इस तान के एक सिरे पर टीन की तीर की सी नोक लगा दो । दूसरी ओर टीन की एक गोल रोटी सी लगा दो । जब हवा चलेगी तो यह टीन घूम जावेगी । काग इस प्रकार रक्खा रहता है कि तनिक से सहारे से ही घूमने लगता अब इस यंत्र को तुम अपनी सब से ऊँची छत पर इस प्रकार रखो कि यंत्र का उ० चिह्न उत्तर की ओर संकेत करे । बस अब तुम्हारा यंत्र तैयार है । वायु का प्रवाह जिस ओर से होगा उसी ओर को तीर संकेत करेगा । यंत्र बनाने की यह सब से सहल रीति है। यदि तुम यह न बनाना चाहो तो और भी रीतिएँ वायु का प्रवाह जानने की हैं । परन्तु यह यंत्र सब से बढ़ कर है। Courtesy Dr. Ranjit Bhargava, Desc. Naval Kishore. Digitized by eGangotri