पृष्ठ:प्राकृतिक विज्ञान की दूसरी पुस्तक.djvu/९०

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(८२) लोटा उस उस खौलते एक लोटे में पानी को इतना गरम करो कि वह खोलने लगे । जब पानी खौलने लगे तो एक दूसरा ठंडे पानी का भरा हुअा लोटा लोटे के ऊपर थोड़ी दूर पर पकड़े रहो । तुम को थोड़ी देर में बहुत सी बूंदें उस लोटे के पेंदे पर दिखलाई देंगी । ऐसा क्यों हुआ ? ठंडे पानी का लोटा जब भाप के ऊपर आया तो वह भाप ठंडी हुई । ठंडी होने से वायु का पानी स्थूल होगया और लोटे के पेंदे पर बूंदों के रूप में दिखलाई देने लगा। बस इसी प्रकार श्रोस बनती है । ओस केवल भाप को ठंडा किया हुआ पानी है। तुमने बहुधा वैद्यों, हकीमों या अत्तारों को अर्क खींचते हुए देखा होगा । वे लोग एक बर्तन में कुछ वस्तुएँ पानी में डालकर रखते हैं । उस बर्तन में से एक नली दूसरे बर्तन में लगी रहती है । यह नली एक दूसरी नली में होकर जाती है जिसमें ठंडा पानी भरा रहता है। जिस बर्तन में वह वस्तुएँ पड़ी होती हैं, उसके नीचे खूब आग जलाई जाती है । इसमें से पानी भाप बनकर उठता है और नली में आकर टंडा होजाता है । इस नली से वह भाप पानी के रूप में दूसरे बर्तन में गिरती है । आगे दिये हुए चित्र में यह यंत्र दिखलाया गया है उसके बाईं ओर एक वर्तन है जिसमें पानी और कुछ पदार्थ Courtesy Dr. Ranjit Bhargava, Desc. Naval Kishore. Digitized by eGangotri