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कुतुब-मीनार


अमीर असफेहसालार अजल कबीर कुतुबुद्दौला व दीन अमीरुल्उ मरा ऐबके सुल्तानी आजुल्ला इन्सारहू। व विस्त व हफ्त आलते बुतखाना के दर हर बुतख़ाना दो बार हज़ार दिलेवाल सर्फ शुदा बूद दरी मसजिद बकार वस्ता शुदा अस्त । खोदाये अज़ व जल बरॉ बन्दा रहमत कुनाद हरके बरनीयते बानी खैरदोआये ईमान गोयद ।

भावार्थ——

दीन और दौलत के केन्द्र, अमीरो के अमीर, सुल्तान ऐबक ने, ५८७ हिजरी ( ११९१ ई०) में इस किले को जीता और इस जामे मसजिद को बनवाया। इस मसजिद की इमा- रत मे २७ मन्दिर तोड़कर उनका माल-मसाला काम मे लाया गया है। इन मन्दिरो में एक-एक मन्दिर के बनवाने मे बीस- बीस लाख दिलेवाल ( एक प्रकार का सिक्का ) खर्च हुए थे। जिसने इसकी नीव डाली है, अर्थात् जिसने इसे बनवाया है, उसे जो आशीर्वाद देगा उसका ईश्वर कल्याण करेगा।

मुहम्मद बिन साम ने पृथ्वीराज से पहले हार खाई थी। जब उसने पृथ्वीराज पर विजय प्राप्ति की और उससे देहली का सिहासन छीन लिया तब उसे परमावधि का आनन्द हुआ। इस विजय के उपलक्ष्य मे उसने यह मीनार बनवाया। देहली विजय करके वह स्वदेश को लौट गया और यहॉ पर कुतुबुद्दीन को गवर्नर बनाकर छोड गया। कुतुबुहीन ने यह मीनार अपने मालिक के विजय की यादगार में बनवाया और उसका