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प्राचीन चिह्न


के ऐसे अनेक नमूने हैं जिनको देखकर देखनेवाले की बुद्धि चक्कर खाने लगती है। उनका यथार्थ वर्णन नहीं किया जा सकता; न उनके नकशों और चित्रो से उनकी सुन्दरता का पूरा- पूरा अनुमान हो सकता है। उनको प्रत्यक्ष ही देखना चाहिए। पशु, पक्षी, फूल, पत्ती, देव, देवी और मनुष्य की मूर्तियाँ इस कौशल से बनाई गई हैं कि उनको देखकर उनके बनानेवालों की सहस्र मुख से प्रशंसा करने को जी चाहता है।

पहाड़ी के ऊपर, किले मे, अनेक टूटी-फूटी मूर्तियो और मन्दिरो इत्यादि के अंश इधर-उधर पड़े हैं। वे इस बात को सूचित करते हैं कि किसी समय अनन्त मन्दिर, मकान और राज-प्रासाद इस शहर की शोभा बढ़ाते थे। परन्तु, अफसोस है, वही आज जगली जानवरो का वास है और जङ्गल इतना धना हो गया है कि मनुष्य का प्रवेश मुशकिल से होता है।

देवगढ़ में कई शिला-लेख हैं। सिद्ध की गुफा, नाहर-घाटी, राज-घाटी और जैन-मन्दिर के लेखों का उल्लेख ऊपर हो चुका है। उनके सिवा और भी छोटे-बड़े कई शिला-लेख हैं। पूर्ण बाबू ने उन सबकी नकल ले ली थी। उनको उन्होने अपनी एक दूसरी रिपोर्ट में शामिल करके गवर्नमेन्ट को भेजा था। मालूम नही, गवर्नमेन्ट ने उनको प्रकाशित किया या नहीं।

[अप्रेल १९०९

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